Book Title: Anekant va Syadvada
Author(s): Chandulal C Shah
Publisher: Jain Marg Aradhak Samiti Belgaon

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Page 374
________________ ३५६ ससार का त्याग करते है । उनका वैराग्य ही ज्ञानभित तथा सिद्धि का अनन्य साधन बनता है। अव साधु, बावा, सत, महत, ओझा, स्वामी आदि आज कल के वैरागो वर्ग की ओर दृष्टि फिराइए। इनमे से ऐसे कितने होगे जिन्होने ज्ञानगर्भित वैराग्य से प्रेरित होकर ससार का त्याग किया हो ? यहाँ आलोचना करने का हमारा आशय नही है । इसमे सदेह नही कि त्यागमार्ग उत्तम है । किसी भी त्यागी वैरागी को देख कर मस्तक अपने आप झुक जाता है । सर्व विरति मार्ग का पालन करने वाले जैन साधुओ तथा आत्मा की समस्त विश्व के साथ 'आत्मसमदर्शिता' के हेतु अपूर्व ध्यान धरने वाले वेदान्ती सन्यासियो के समागम से जानी हुई और देखी हुई उनकी त्यागभावना एव आत्माभिलापा के सामने सदा मस्तक झुकता ही रहा है । जैन साधु जो कठिन प्राचार पालते है उसे देखकर दुनिया भर के समझदार लोगो ने अाश्चर्य व्यक्त किया है । जैन साधुग्रो के प्राचार, उनको दिन चर्या, और उन्हे जिन मर्यादापो का पालन करना पडता है, उनका अध्ययन करने वाले किसी भी सज्जन को अवश्य इस बात को प्रतीति हो जाएगो कि''यह समार की सर्वोच्च साधु-सस्था है।" ___यहाँ यह वात कहने का उद्देश्य इतना ही है कि केवल ससार मे कुछ कठिनाइयो की परपरा देख कर उनका सामना करने की शक्ति के कारण ही वस्त्र वदल लेने मात्र से कोई अर्थ नही निकलता। साधुत्व का मार्ग तो अति कठिन है । समार की कठिनाइयाँ देख कर उनसे घबराने वाला व्यक्ति साधु वन कर कितनी प्रगति कर सकेगा, यह सोचने की बात

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