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अनुभव उसकी प्रथम कसौटी है । उसके बाद वह व्यक्ति परिश्रमी है या नही, प्रामाणिक है या नही, विश्वासपात्र है या नही, तन्दुरुस्त है या नहीं, अच्छे खानदान का है या नही, उसके लिए योग्य सिफारिशे ( References ) हैं या नही, उसकी वारणी श्रौर लेखनशैली अच्छी है या नही और अन्त मे वह दूसरो को प्रभावित कर सकता है या नही - ग्रादि सारी बातो की पूरी जाँच करने के बाद ही उसकी नियुक्ति की जाती है । तदुपरात इस बात का विचार भी किया जाता है कि वह व्यक्ति स्वभाव से झगडालु है या शान्त, मधुर चौर समाधानप्रिय है । इस प्रकार नियुक्ति करने के वाद भी उसे स्थायी पद देने से पहले तीन या छह महीने का प्रयोगात्मक समय (Piobation Period) दिया जाता है । हाँ यदि वह ममेरा मौसेरा या चचेरा फुफेरा कोई सम्बन्धी हो तो बात और है ।
इस प्रकार भिन्न भिन्न व्यक्तियो और वस्तुओ की परख करना एक सनातन व्यावहारिक सिद्धान्त है । जैन दार्शनिको द्वारा निर्मित सप्तभगी भी इसी तरह की एक पद्धति - Formula—G1oup of formulas है ।
इन सात कसौटियों पर चढाने के बाद जो निर्णय Solution Conclusion किया जाता है वह पूर्ण और विश्वासपात्र - Complete and Rehable ही होता हैइस विषय मे फिर किसी शका के लिए कोई अवकाश नही रहता । इस पद्धति से निर्णय करने के बाद मनुष्य के मन पर कोई बोझ नही रहता । वह किसी प्रकार की चिन्ता किये विना निश्चिन्त नीद ले सकता है ।