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उठाने वाले उम्मीदवार है । ये दोनो ग्राकर पूछते है कि 'क्या बैरिस्टर साहब की उदारता का लाभ मिलेगा ?
इन दोनो सज्जनो मे से चतुर्भुज भाई वैरिस्टर साहब की ज्ञाति के सदस्य है । स्वचतुष्टय मे से एक अपेक्षा - स्वक्षेत्र की अपेक्षा को ध्यान मे लेकर हम उनसे कह देगे कि "बैरिस्टर की उदारता का लाभ आपको मिलेगा ।" यहाँ प्रथम भग की अपेक्षा से निश्चित हुआ कि 'बैरिस्टर साहब उदार है ।'
श्री गंगाधर बैरिस्टर की ज्ञाति के सदस्य नही है । उदारता के लिए यह पर क्षेत्र होने के कारण, इस पर क्षेत्र की अपेक्षा से गंगाधर भाई से तो हम कह देगे कि 'वैरिस्टर साहब उदार नही है ।'
पहले और दूसरे भंग के अनुसार हमने जो दोनो बाते कही, उनसे पहले आये हुए चतुर्भुज भाई को प्राशा बन्धने के कारण वे हमारे पास बैठते है । प्रथम भग से उन्हे यह लाभ हुआ, 'आशा बँधी ।' दूसरे भग से जवाब मिलने से श्री गंगाधर भाई वहाँ से चले जाते है । उन्हें यह लाभ हुग्रा कि बैरिस्टर की उदारता उसके लिये नही ही है ऐसा निश्चित उत्तर मिलने के कारण वे झूठी आशा रख कर व्यर्थ हैरान होने से बच गये ।
चतुर्भुज भाई यह जानकर खुश होते है कि 'गगाधय भाई चले गये और अव में ही एक उम्मीदवार बाकी रहा हूँ । उन्हें ऐसी आशा बँधी है कि लाभ होगा, फिर भी अधिक निश्चित करने के लिये वे फिर से पूछते है, "वैरिस्टर साहब की उदारता का लाभ, मै उनका ज्ञातिजन है, इसलिये मिलेगा