Book Title: Anekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 6
________________ अनेकान्त 67/1, जनवरी-मार्च 2014 यहाँ रूप का अर्थ मूर्ति है। यतः स्पर्श, रस, गन्ध और रूप सदा एक साथ ही पाये जाते हैं, अतः रूपी कहने से स्पर्श, रस, गन्ध एवं वर्ण वाले पदार्थों का बोध होता है। यहाँ रूप शब्द उपलक्षण है, अतः उसके साथ अविनाभाव सम्बन्ध वाले स्पर्श, रस एवं गन्ध का भी ग्रहण अभीष्ट है। आचार्य विद्यानन्दि स्वामी ने कहा है - 'अरूपित्वापवादोऽयं रूपिणः पुद्गला इति। रूपं मूर्तिरहि ज्ञेया न स्वभावोऽखिलार्थभाक्॥ रूपादिपरिणामस्य मूर्तित्वेनाभिधानतः। स्पर्शादिमत्त्वमेतेषामुपलक्ष्येत तत्त्वतः।।१० वे आगे स्पष्ट करते हैं कि स्पर्श आदि गुण वाले पुद्गल होते हैं- ऐसा कहने से वैशेषिकों द्वारा मान्य पृथिवी, जल, अग्नि, वायु द्रव्यों का निराकरण हो जाता है। क्योंकि ये पुद्गल द्रव्य की ही पर्यायें हैं। यतः स्पर्श आदि चारों गुण एक दूसरे के अविनाभावी हैं, अतः किसी के दिखाई न देने/ अनुपलब्ध होने पर उसका अभाव नहीं मान लेना चाहिए। अनुमान प्रमाण से उनकी सिद्धि कर लेना चाहिए। कहा भी गया है - अथ स्पादिमन्तः स्यः पदगला इति सचनात। क्षित्यादिजातिभेदानां प्रकल्पननिराकृतिः।। नाभावोऽन्यतमस्यापि स्पर्शादीनामट्टष्टितः। तस्यानुमानसिद्धत्वात्स्वाभिप्रेतार्थतत्त्ववित्॥२१ अनुपलब्धि प्रत्यक्ष प्रमाण की निवृत्ति साधक तो हो सकती है, किन्तु इससे अनुमान एवं आगम प्रमाण की निवृत्ति सिद्ध नहीं होती है। स्वयं नैयायिक-वैशेषिक अनेक अनुपलब्ध बातों की सिद्धि अनुमान एवं आप्तवचन (आगम) प्रमाण से करते हैं। पुद्गल की पर्यायें: तत्वार्थसूत्र में आचार्य उमास्वामी ने शब्द, बन्ध, सूक्ष्मता, स्थूलता संस्थान (आकृति), भेद (टुकड़ा होना), अन्धकार, छाया, आतप और उद्योत (अनुष्ण प्रभा) को पुद्गल की पर्यायें कहा है।३२ यहाँ यह विशेषता है कि स्पर्शादि तो परमाणुओं के भी होते हैं और स्कन्धों के भी होते है।, जबकि शब्द आदि व्यक्त रूप से स्कन्धों के ही होते

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