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भनेकान्त
नहीं हो
पात किया की प्रतिम
(२) वह प्रतिमा जहां मिली वहां ही राजा ने अपने हा, यहां एक सवाल पैदा हो सकता है कि यह नाम का उल्लेख करने वाला पीपुर नगर बसाया। उल्लेख सिर्फ अकेले श्रीपुर का नहीं तो उन ८५ दिव्य
(३) अंबादेवी और क्षेत्रपाल का प्रसंग प्रादि मौर नगरों का भी है। अत: वहां भी ऐसी अंतरिक्ष प्रतिमा भी बातें हैं । इन बातों से डा० विद्याधर जी असहमत तो होने को मानना पड़ेगा । तो इसका समाधान यह ही है नहीं हो सकते, क्योंकि उन्होंने ही इस कथा को प्रमाण कि भगवान नेमिनाथ के उस जमाने में वैसा था ऐसा के जरिय उद्धृत किया है। और सहमत हैं तो बताइये कि माने तो उसमें कोई बाधा या मापत्ति नहीं पाती। भावी तीर्थकर पार्श्वनाथ की प्रतिमा मिलने वाले वह मद्रास के पास का मइलपुर (मैलपुर) एक अतिशय श्रीपाल दसवीं सदी के कैसे हो सकते है ?
क्षेत्र के नाम से जैन साहित्य में उल्लिखित है। वहां के मूलश्वे. मुनि सोमप्रभगणी (सं० १५०५) भी उस नायक भगवान नेमिनाथ 'गगन स्थित, होने का वहां के श्रीपाल का समय भ. पाश्वनाथ के पूर्व का ही मानते स्तोत्र में स्पष्ट सूचित किया है। देखो उस स्तोत्र के हैं। फिर प्रतिमाजी की स्थापना कब की ?
पहले श्लोक का उत्तर चरण यह है-'हेमनिमितमंदिरे बाबू कामताप्रसादजी-अंतरिक्ष पार्श्वनाथ क्षेत्र के 'गगन स्थितं' हितकारणं, नेमिनाथमहं चिरं प्रणमामि नील स्थान पर भगवान पाश्वनाथ का ममवशरण महित पाग- महत्विषम् ॥१॥ मन होने को सूचित करते हैं । तो फिर श्रीपुर कब का? अतः भारत में ऐसे अनेक स्थल रहें तो उसमें बाधिक
"माज जहां भगवान विराजमान हैं उसी भोयरे में कुछ भी नहीं। इसलिए मैंने जो अनुमान किया कि इस मूर्ति की स्थापना संवत ५५५ के वैशाख शु० ११ को
अंतरिक्ष पार्श्वनाथ श्रीपुर का अस्तित्व भ. पार्श्वनाथ के
. हुई थी।" ऐसा अकोला जिले के सन १९११ के गॅजेटियर
पहले से है तो इसमें कथा का विरोध कैसे पाया ? में निश्चित लिखा है। तो क्या उस लेखक के पास इस
शिलालेखांतर्गत श्रीपुर का उल्लेख इस क्षेत्र बावत बाबत कोई प्रमाण नहीं पाया होगा?
नहीं होगा तो जाने दो, उसके लिए हमारा कोई हट श्रीपुर नाम के अन्य दो नगरों का मापने उल्लेख नहा है। किया, और संदर्भ देखकर कथन करने को सूचित किया। अब दूसरा मुद्दा है 'स्थान' का-कहीं उस धारवाड़ इसके लिए ऋणी हूँ। धीपुर नाम के उतने ही गांव नहीं जिले का श्रीपुर इस मूर्ति का मूल-स्थान है (जहां एक और भी हैं। एक नन्दुरबार के पास (गुजरात में) श्रीपुर राजा को मिली) बताते हैं। तो कहां लिखा जाता है कि (शिरपुर) है कि जहां के खेतों में श्वेताम्बर मूर्तियां अं० पा० श्रीपुर मैमूर या धारवाड़ जिले में कहीं होगा। मिली है। एक सोलापुर (महाराष्ट्र) के पास श्रीपुर है इस बाबत पं० दरबारीलाल जो कोठिया से पत्र व्यवहार
और एक वर्षा के पास श्रीपुर का उल्लेख यादव माधव किया और मुलाकात भी हुई। मगर अापने लिखाकषि करते हैं।
'माप अपने विचार प्रकाशित कीजिए। उस पर मैं विचार फिर कौन से श्रीपूर का उल्लेख ग्रन्थों में मिलता है करूंगा।' प्रतः मुझे भनेकान्त का प्राश्रय लेना पड़ा। यह कैसे समझना ? जिनसेन भाचार्य (८वीं सदी) जिन माश्चर्य यह था कि सन् १९६२ में आप कारंजा पधारे दिव्य नगरों में श्रीपुर का उल्लेख करते हैं वहां वे लिखते थे और मथुरा जैन संघ के अधिवेशन में इस क्षेत्र की हैं कि उस नगर में एक जिनालय होता है, वहां की चर्चा हुई है और जातिया आप अंतरिक्ष भगवान का प्रतिमा माकाश में प्रघर होती है
दर्शन ले पाये हैं तो भी मांखों देखे दृश्य पर आपको "तत्रस्थापि शान्दिनिष्क्रिम्य नमस्यमी। विश्वास नहीं पाया। बस यही हाल पुराने कथा लेखक .. बपोपदिष्टा दृश्यन्ते सन्मुखीभूय पश्यताम् ॥"११
के हुए होंगे, थोड़ा भी कथन वे टाल नहीं सके। इसको
१३६.५७ चर्चा पागे कर रहा है। तो क्या यह श्रीपुर अंतरिक्ष का श्रीपुर नहीं हो कोई विद्वान यह मूर्ति एलोरा से एलिचपुर जाते