Book Title: Anekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 307
________________ २८० अनेकान्त सृष्टि करता है। पुरुप स्वयं स्रप्टा नहीं, अपितु एक को प्रात्मसात् कर लिया। इसके फलस्वरूप सिन्धु घाटी बार प्रकृति को क्रियाशील बनाकर वह अलग हो जाता की स्त्री देवता का रुद्र की पूर्वसहचरी अम्बिका के साथ है और केवल प्रेक्षक के रूप में काम करता है। इससे तादात्म्य हो गया और उसे रुद्र पत्नी माना जाने लगा। ज्ञात होता है कि इस समय तक रुद्र उन लोगों के पारा- इस प्रकार भारतवर्ष में देवी की उपासना पाई और शक्ति ध्यदेव बन गये थे जो सांख्य विचार-धाग का विकास कर मत का सूत्रपात हा। इसके अतिरिक्त जननेन्द्रिय रहे थे। प्रश्नोपनिषद् में रुद्र को परिक्षिता कहा गया है सम्बन्धी प्रतीकों की उपासना, जो सिन्धु घाटी के देवताओ पौर प्रजापति से उसका तादात्म्य प्रकट किया गया है ।३ की उपासना का एक अंग थी, का भी रुद्र की उपासना मैत्रायणी उपनिषद में कद्र की 'शम्भु' (अर्थात् शान्तिदाता) में समावेश हो गया। इसके अतिरिक्त "लिंग' रुद्र का उपाधि का पहली बार उल्लेख हुप्रा ।४।। एक विशिष्ट प्रतीक माना जाने लगा और इसी कारण श्रौत-सूत्रों में रुद्र की उपासना का वही स्वरूप उप- उसकी उपासना भी प्रारम्भ हो गई। परन्तु धीरे-धीरे लब्ध होता है जैसा ब्राह्मण ग्रन्थों में यहाँ रुद्र का रूप लोग यह भूल गये कि प्रारम्भ में यह एक जननेन्द्रिय केवल एक देवता का है और उनके रुद्र, भव, शनं प्रादि सम्बन्धी प्रतीक था । इस प्रकार भारत में लिंगोपासना अनेक नामों का उल्लेख है ।५ महादेव, पशुपति, भूपति का प्रादुर्भाव हमा, जो शेव धर्म का एक अंग बन गई। प्रादि उपाधियों से भी विभूषित किया गया है ।६ रुद्र से दूसरी ओर अनिषदो से प्रतीत होता है कि रुद्र की मनुप्यो और पशनों की रक्षा के लिए प्रार्थना की गई आसना का प्रचार नवीन धार्मिक तथा दार्शनिक विचार मत हा७ गहरागनायक प्रापाधया का दाता मार व्याधि धारा के प्रवर्तकों में हो रहा था, और ये लोग रुद्र को निवारकह कहा गया है। गृह्य सूत्रों में रुद्र की समस्त परब्रह्म मानते थे। मुत्र युग में रुद्र को "विनायक की वैदिक उपाधियो का उल्लेख मिलता है ।१० यद्यपि इनके उपाधि दी गई और यही अपर वैदिककाल में गणेश नाम 'शिव' और शकर ये नवीन नाम अधिक प्रचलित होते ही से प्रसिद्ध हमा। रुद्र तथा विनायक प्रारम्भ में एक ही जा रहे है।११ यहाँ उन्हें श्मशानों, पुण्यतीर्था एव चौराहा देवता के दो रूप थे परन्तु काल क्रम से यह स्मृति लुप्त जैसे स्थलों में एकान्त विहारी के रूप में चित्रित किया . " हो गयी और गणेश को रुद्र का पुत्र माना जाने लगा। गया है ।१२ उपनिपत्कालीन भक्तिवाद ने देश के धार्मिक माचारमिस घाटी के निवासियो का वैदिक प्रार्यों के साथ मागला स्थित कर दिया । कर्मकाण्ड का संमिश्रण हो जाने पर रुद्र ने मिन्धु घाटी के पुरुष देवता स्थान स्तुनि, प्रार्थना तथा पूजा ने ले लिया और मन्दिरा १. श्वेताश्वतर उपनिषद् ४,१ के निर्माण के साथ मानवाकार तथ लिंगाकार में रुद्र२. वही . ४.५ मूर्तियों की प्रतिष्ठा तथा पूजा प्रारम्भ हो गई तथा रुद्र ३. प्रश्नोपनिषद् २, ६ का नाम भी अब शिव के रूप में लोक प्रचलित हो गया। ४ मैत्रायणी उपनिषद् १५. ८ पाणिनी के समय में शिव के विकसित रवरूप के ५. शांखायन धौनमूत्र - ४.१६, १ प्रमाण वे सूत्र है, जिन्हे 'माहेश्वर'१ बतलाया गया है। ६. वही : ४.२०, १४ वैसे पाणिनि की राष्टाध्यायी मे रद्र, भव और श शब्दो ७. वही : ४, २०, १ पाश्वलायनः ३, ११, १ का भी उल्लेख मिलता है।२ (क्रमश.) ८. लायन श्रौतमूत्र - ५, ३, २ १. महेश्वर मूत्र इस प्रकार है-अ इ उ , ऋ ल क ए ९. शांखानन श्रौतमूत्र : ३, ४, ८ प्रोइऐ प्रौ च्, ह प वर , ल ण् ज म हुण ग १०. प्राश्वलायन गृह्यसूत्र : ४,१० म्, झ भब, घढध, ज व ग ड द श ख फछ ११. वही : २,१,२ ठथ च ट त , क प य श प स र ह ल । १२. मानव गृह्यसूत्र २, १३, ६, १४ २. अष्टाध्यायी : १, ४६, ३, ५३, ४ १००

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