Book Title: Anekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 292
________________ साहित्य में अंतरिक्ष पार्श्वनाथ श्रीपुर नेमचन्द धन्नूसा जैन, न्यायतीर्थ (२१) मुनि श्री सुमतिसागर (सं०१५७५ से १६५२) थे। इन्होंने ४७ छंद की गुजराती में अन्तरिक्ष पार्श्वनाथ यह सूरतशाखाके बलात्कारगणके भ० अभयचंद्र शिग्य विनंति की रचना सं० १६७४ चैत्र सुदी पंचमी, रविवार प्रभयनंदीके शिष्य थे। इन्होंने षोडशकारणपूजा, दशलक्षण- को व्यारा नगर में की थी। जान पड़ता है यह रचना पूजा, जम्बूद्वीप जयमाला, व्रतजयमाला, तीर्थजयमाला प्रादि समय उनके पास श्वे. मुनि लवण्य समय की कृति होगी। पूजन माहित्य निर्माण किया है। तीर्थ जयमाला-- इसका सविस्तर वर्णन हम मागे करने वाले हैं। 'अन्तरिक्ष वंदे सुख थाय, संखजिनेश्वर छायाराय । इस काव्य में बताया है की, खरदूषण राजाने इगर पूरवर सांभलोदेव, जटामहितग्रादि देव सुमेव ।१६। भोजनोत्तर वह प्रतिमा जलकप में डाली और बहुत जम्बूद्वीप जयमाला काल बाद एलिचपुर के एलच गजा को वह कैसे प्राप्त 'माणिकस्वामी गोम्मट ए, अन्तरिक्ष सखेस । हई। तथा जहाँ प्रतिमा अन्तरिक्ष रही वहाँ श्रीपुर नाम महामनि जिन कहिया, केवल ज्ञान-सुचन्द्रप्रकाश जेह कहिया। का विख्यात नगर बसाया। पहले वह प्रतिमा इतने (२२) भट्टारक धर्मचंद्र (सं० १६०७ से २२) ये ऊंचाई पर थी की, उसके नीचे से एक घुड़ सवार निकल बलात्कार गण कारंजा-शाखा के भ. देवेंद्रकीति के शिप्य जाता था। मगर कलिग प्रभाव से पब दोर प्रमाण हि थे। इनके द्वारा निर्मित पारति मे शिरपुर-जिनका अधर है। देखोउल्लेख हुआ है। 'अन्तरिक्ष प्रतिमा रहि जाम, नगर बसायो तेनो नाम । 'करुणानिधि, परमावधि, रसवारिधिभेपा, श्रीपुर नामे छे विख्यात, जेहनी ग्रथी कहिये बान ॥३॥ तरिधर नरकरि, 'वरजिन शिरपूर केशा । जब एलचपुर राजकुमार,तहि यों जानो दिवो अमवार । जित वर्मक, धृतशमंक, शतशर्म करेशा, ए कलियुग महा दोर प्रमाण, 'अन्तरिक्षजिन का बखान । गुणभद्रक, धृतचद्रक, 'वषचंद्रक भेषा॥ [२५] भ० रत्नभूषण [स. १६७४] ये काष्ठाजयदेव जयदेव, जय वामा तनया, प्रारति करूं, संघ नंदीतटगच्छके भ० त्रिभुवनकीतिके शिष्य थे । इन्होंने तारक गुरु, शिवराया तनया ॥१॥ प्रादि । पंचमेरु की जयमाला में श्रीपूर-जिनका उल्लेख किया है (२३) पं. मेघराज [सं०१५७५ से १६७०] ये विद्यन्माली जयमालहूंबड जातिके थे । इनके जसोधर राम, तीर्थवंदना, पार्श्व- अन्तरिक्ष पूजो शंम्वजिनेन्द्र, तारंग पूजो महामुनीद्र ॥१२॥ नाथ भवांतर ये ग्रंथ उपलब्ध है। तीर्यवंदना [२६J जयसागर--ये भ० रत्नभूपण के शिष्य थे । 'श्रीपुर पारमनाथ, गोम्मट स्वामी वेलगुले ए। इन्होने 'मर्वतीर्थ जयमाला में श्रीपुर पाश्वनाथ का उल्लेख तेरे पुरे वर्धमान, पोधनापुरे बंदु बाहुबलिए ॥१६॥ किया है। देखोपाश्र्वनाथ-भवान्तर 'अनेक अतिसयो सुभ गुणसागरु । 'सु अन्तरिक्ष वन्दू जिनपास, अन्तरिक्ष श्रीपुरी परमेश्रु । वांछितदायक पास । सिरपुर नगर पुरवि मन पास। जिनेश्वरु। ब्रह्म शांतिप्रसादे मेधाम्हणे । होलपुरि बन्दै शंख जिनंद, कर जोडुनि वंदना करु ॥४॥ सु तारंगो पूजा मुनिवृद॥१४॥ [२४] म. महीचन्द्र [स. १६७४ से ६५] ये [२७] ब्रह्म ज्ञानसागर सिं०१६७६ से १] यह बलात्कार गण सुरत शाखा के भ० वादिचंद्र के शिष्य काष्ठासंघ चंद्रकीति के शिप्य थे। इन्होंने भारत भर में

Loading...

Page Navigation
1 ... 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318