Book Title: Agam Sutra Satik 41A Oghniryukti MoolSutra 2a
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 31
________________ आघनियुक्तिः मूलसूत्र अमन्झिमनपुंसआ अन्नधम्मियमज्झिममहिला य ४. साहम्मिअमझिमनपुंसओ अन्नधम्मिअथरी अ५. साहम्मिअमज्झिमनपुंसआ अन्नधम्मियरुणी अह.साहम्मियमुज्झमनपंसओ.अन्नधम्मियमज्झिमनपुंसओ अ ७. साहम्मिअमाज्झिमनपुंसओ अन्नधम्मियर्थरनपुंसआ अ ८. साहम्मिअमज्झिमनपुंसओ अन्नधम्मिअतरुणनपंसओ अ ९. एते नव साहम्मिअमज्झिमनपुंसगेण अमंचमाणेण लन्द्रा।। साहम्मिअर्थरनपंसआअन्नधम्मिअमझिमपरिसा अ१.साहम्मिअथेरनपुंसगा अन्नधम्मिअथेरपुरिसोअ२, साहम्मिअथेरनपुंसगा अन्नधम्मिअतरुणपरिसोअ३.साहम्मिअर्थरनपुंसगोअन्नधम्मिअभाज्झिममहिलाअ ४. साहम्मिअथेरनपुसंगा अन्नधम्मिअथरी अ५. साहम्मिअथेरनपुंसओ अन्नधम्मि अतरुणी अ६, साहम्मिअथरनपुंसगो अन्नधम्मिअमज्झिमनपंसगोअ७. साहम्मिअथरनपंसगी अन्नधम्मिअथेरनपुंसगोअ ८. माहम्मिअथेरनपुंसगा अन्नधम्मिअतरुणनपुंसगाअ९. एतेनवसाहम्मियथेरनपुंसंगण अमंचमाणेणलद्धा ।। साहम्मिअतरुणनपं सगा अन्नधम्मिअमन्दिमपुरिमा अ१. साहम्मि अतरणनपंसगो अ २. साहम्मिअतरुणनएंसगा अन्नधम्मिअतरुणपुरिसा अ ३. साहम्मिअतरुणनगी अन्नधम्मिअमज्झिममहिला अ४. साहम्मिअतरुणनपुंसगो अन्नधम्मिअथेरीअ५, साहम्मिअतरुणनपुसंगो अन्नधम्मिअतरुणी अ६. साहम्मिअतरुणनपुंसगो अन्नधम्मिअमज्झिमनपुंसगो अ ७. साहम्मिअनरुणनपुंसगो अन्नधम्मिअथरनपुंसगो अ ८, साहम्मिअतरुणनपुंसगो अन्नधम्मिअतरुणपंसगो अ१, एते नव साहम्मिअतरुणनपुंसगेण अमुचमाणेण लन्डा ।। एते नव नवगा साहम्मिअअन्नधम्मिअचारणिआए होति। एगत्थ मिलिआ एक्कासीति॥ उक्तं पृच्छाद्वारम। (अथ) “छक्के पढमजयणा' (यदुक्तं)तां विवृण्वन्नाहमू. (५८) तिविहो पुढविक्काओं सच्चिता मीसओ स अच्चितो। एक्कको पंचविहो अच्चित्तेणं तु गंतव्वं ।। वृ.त्रिविधःपृथिवीकायः-सच्चित्तोमिश्रोऽचित्तश्चेति,इदानींसत्रिविधोऽप्यकैकःपञ्चप्रकारः, तत्रयोऽसौ मचित्तः स कृष्णनीलरक्तपातशुक्लभेदन पञ्चधा. एवं मिश्राचित्तावपि, तत्र कतरेण गन्तव्यमित्याह'अच्चित्तेणं तु गंतव्वं ति. तत्र योऽसावचेतनस्तेन गन्तव्यमित्युत्सर्गविधिः तत्र स एव पृथिवीकायः शुष्क आर्द्रस्यात्, आह च. म. (५९) सुक्कोल्न उल्लगमणे विराधना दुविह सिग्गरवप्पत। सक्कोवि अधूलीए ते दोसाभट्रिए गमनं ॥ वृ.शुष्कः-चिकग्वन्न आदति, तत्र द्वयाः शुष्कायाः शुष्केन गन्तव्यं किं कारणं?. यत आर्द्रगमन विराधनाद्विधाभवतिआत्मसंयमयोः तत्रात्मनाविराधनाकण्टकादिवेधात.इतरातत्रयादिपाडनात। इदानी विराधनाऽधिकदोवप्रदर्शनायाह- सिग्गखप्पत सिग्गत्ति श्रमोभवति. खुप्पतेत्तिकदमएवनिमज्जति. तितत्रशुष्कनपथागमनमम्यनुज्ञातमासीत.तनापिनगन्तव्यंयद्यसाधूलीबहलोभवतिमार्गः किंकारण? यताधूलीबहलेनापिपथागच्छतस्तावदोषाः केचते? संयमविराधनाआत्मविराधनाच.नत्रात्मविराधना अक्ष्णोधूलिः प्रविशति, निमज्जन श्रान्तश्च भवनि, उपकरणं मलिनीभवति. तत्र यापकरणक्षालनं कगत्यसमाचार्ग. अथ नक्षालयति प्रवचन-हालना स्यात. अत उच्यत भट्टिा गमण ति. भ्राष्टया गन्तव्यं. रजोरहितया त गन्तव्यमिति । इदानीं भाष्यकार आर्द्रस्य पृथिर्वाकायस्य भेदान दर्शयन्नाह. मू. (६०) तिविहो उ होइ उलना महमित्था पिंङआय चिखल्ला। लत्तपहलिन इंडअ खुपिज्जड़ जत्य चिक्विलना । भा. ३३] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256