________________ आगम निबंधमाला .. के लिये, विविध पाप क्रियाओं का स्वीकार करती है / यथा- धर्म के नाम से जीवों की बलि चढाना; होम, हवन, द्रव्यपूजा, फूल, पानी, अग्नि आदि की प्रवृत्ति; नाचना, कूदना, ढोल, ताल आदि वाजिंत्र बजाना वगैरह पाप क्रियाएँ लोग धर्म की दृष्टि से भी करते रहते हैं / (4) अपने ऊपर आई हुई आपत्ति, रोग, आतंक, उपद्रव आदि को दूर करने के लिये या किसी भी प्रकार से अपने बचाव, सुरक्षा, स्वार्थ के लिये पाप क्रियाओं का ज्ञानी और अज्ञानी प्राणी स्वीकार करते रहते हैं। पाप क्रियाओं के कारण बताने में शास्त्रकार ने इन चार मुख्य कारणों को चार निम्न शब्दों में कहा है- (1) इमस्स चेव जीवियस्स (2) परिवंदण-माणणपूयणाए (3) जाईमरण मोयणाए (4) दुक्खपडिग्घाय हेउं / ___एक प्रमाद मूलक और दूसरी विषयार्थ मूलक / संसार में प्राणी अपने इन्द्रिय विषयों की पूर्ति के लिये और लापरवाही से जीव हिंसा करते हैं अथवा तो इन दोनों को अर्थ दंड और अनर्थ दंड भी कहा जा सकता है / चौथे उद्देशक का वह वाक्य इस प्रकार है-- जे पमत्ते, गुणट्ठिए से हु दंडे त्ति पवुच्चइ / अर्थात् जो प्रमादी और विषयार्थी है वह हिंसा की प्रवृत्ति करता है। निबंध-५ एकेन्द्रिय जीवों की वेदना का स्पष्टीकरण स्थावर जीवों की वेदना अव्यक्त होती है अर्थात् अपनी वेदना को वे जीव व्यक्त नहीं कर सकते और अन्य अल्पज्ञानी व्यक्त रूप से उनके दुख को जान नहीं सकते / किंतु विशिष्ट ज्ञानी अपने ज्ञान से जान सकते हैं और हमें दृष्टांत द्वारा समझा सकते हैं, बता सकते हैं / एकेन्द्रियों की इस अव्यक्त वेदना को शास्त्र में दृष्टांत द्वारा इस प्रकार समझाया है- (1) किसी अंधे, बहरे, गूंगे, अपंग अर्थात् हाथ-पाँव रहित अशक्त व्यक्ति को कोई जोर जोर से प्रहार करे और वह हीनांग अंध व्यक्ति अपने दुःख को किसी प्रकार प्रकट न कर सके, फिर भी उस व्यक्ति को असह्य वेदना होना हमारा अन्तर्मन स्वीकार करता है। ठीक उसी प्रकार सभी अंगोपांगों के अभाव में मात्र शरीर वाले एकेन्द्रिय प्राणियों को भी वेदना होती है / (2) जिस तरह शुद्ध चेतना, व्यक्त चेतना / 18