________________ आगम निबंधमाला सर्प, कुत्ते आदि के स्वभाव को जान लिया है, फिर भी कुतूहल आदि के कारण जो उनसे दूर नहीं होकर उनकी छेड-छाड करते हैं और फिर उन्हीं से दु:खी होते हैं, तो वे उस विषय में अपेक्षा से अज्ञानी ही कहे जाते हैं अर्थात् उनका जानना अनजाने के बराबर हो जाता है / इस प्रकार अपेक्षा से ये ज्ञानी और अपेक्षा से अज्ञानी आत्माएँ समझनी चाहिये। प्रथम अध्ययन के प्रथम उद्देशक में यह बताया गया है कि लोक में, संसार में ये समस्त कर्म की जनक क्रियाएँ और क्रियाओं के करने के हेतु-कारण जो बताये गये हैं उन्हें जानकर, समझकर, स्वीकार कर जो उन क्रियाओं का त्याग कर देता है, क्रिया के हेतुओं से भी ऊपर उठ जाता है अर्थात् शक्य समस्त क्रियाओं, आश्रवों का त्याग करने वाला ही सच्चा और श्रेष्ठ या वास्तविक ज्ञानी है / यह शुद्ध और उच्च अपेक्षा से अंतिम कथन किया गया है / वह अंतिम उद्देशक वाक्य इस प्रकार है- जस्सेते लोगंसि कम्म समारंभा परिणाया भवंति, से हु मुणी परिण्णाय कम्मे त्ति बेमि / इस प्रकार मुनिजीवन स्वीकार कर पाप क्रियाओं और कारणों का शक्य त्याग करनेवाला संसार त्यागी मुनि और जिनाज्ञा में विचरण करने वाला श्रमण ही सच्चा ज्ञानी कहा गया है / निबंध-४ जीवों के पाप करने के मुख्य कारण और प्रकार . इन उक्त एक प्रकार की ज्ञानी आत्माओं को और संसार की अन्य संपूर्ण अज्ञानी आत्माओं को पाप कार्यों के करने में मुख्य कारण इस प्रकार है- (1) ये आत्माएँ अपने प्राप्त जीवन और शरीर के निर्वाह के लिये विविध पाप क्रियाओं को स्वीकार करती है / (2) कई आत्माएँ मान संज्ञा में प्रवाहित होकर अपनी यश-कीर्ति, मानसम्मान, पूजा प्रतिष्ठा के लिये पाप क्रियाओं का स्वीकार करती है। (3) कई आत्माएँ मतिभ्रम से, कुसंगति से अर्थात् कुधर्म प्रचारकों की संगति से या देखा देखी धर्म के नाम से, भगवान के नाम से और अंत में मोक्ष प्राप्ति का झूठा मार्ग अपनाकर धर्म के लिये, संसार मुक्ति / 17 /