Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
View full book text
________________
नमस्कार
सिद्धः
इतो य सोपारण दुरिमलं जातं, कोकामो उज्जणि गतो, किह रायं जाणावेमित्ति कबीतेहिं गंधसालिं अक्हरेति, कोटाकाव्याख्यायाम
शिल्परिएणे कहिय, मरगतेणं दिवो, आणिनो, रणा जातो, विसी दिग्णा, गरुडोकतो, मोराया तेण कोक्कासेण देवीए यसमं हिंडति,
जो से गणमनि त भणनि-अहं आगामेण आगतो मारेमि, मब्वे वसमाणिया, ते देवि सेसिगाओ पुच्छति जतो हिंडति, एगाए ॥५४॥
| बच्चंतस्स एसा णियसणीलिया गहिया, गतो, णियनणबेलाए जातं, कलिंग इंसि कला पक्खो मग्गो, तत्थ पडितो, मगरं
गतो, तस्स ग्हकारी रहं णिम्मवनि, पगं च णिम्मवियं, एगस्स मुव्वं घडिएल्लियं, किंचि किंचेि पवि, ततो सो उवगरमाणि | मग्मति, तेणं भणियं-जाव घगतो प्राणेमि, इमाणि राउलाओ प लम्भंति निकालिऊणं, सो गतो, इमेण तावेवं संघातियं उर्द्ध | कतं जाति, अफिडियं परिणियननि. पन्छामुहर्यपि ण पडति, इतरस्म सञ्चयं जाति अफिडियं पडति, मो आगतो जाव ते | णिम्मात पेच्छनि, अवकावेवणं गतो. रणो कहियं जहा कोकासो आगतो, तम्म बलणं सवरायाणमा तेणं वसमाणीया, सो महितो, तेण हम्मण अक्वाय, नाहे मह देवीय राया गहितो, भत्तं रोधीय, जागरेहि अयसमीतेहि कामपिडिया पवनिया, | कोकासो भणिो -मम पुनम्म मनभूमिग पामादं कंगहि, मम य मझ, तो मच्चरायाणए आणावेस्सामि, तेण णिम्मवितो, | कागवण्णषुत्तस्म मउणगर्जन कानण लेहो विसज्जितो, पहि जाव अहं एने मारेमि, नो इमें पियं च ममं च मोएहिमिति दिवमो || * दिनो, पासायं मपुनओ गया रिलड़ना, स्वीलिया आहना, संपुडो जातो, सपुसतो मनो, कागवण्णपुत्तेणवितं णगरं गहित, पिता ॥५४॥ काय कोकासो पमोडया, अण्ण मणति-कोकासेण णिविणारण अप्पा तत्थेव मारितो | एस सिप्पसिद्धी ।
विज्जासिद्धो अज्जग्वउडो, तेमि पासादेण विज्जा कण्णाहाडिया, विज्जासिद्धस्स णमोकारेणवि किर विज्जा उपईति, सो
SAR

Page Navigation
1 ... 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617