Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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नमस्कार व्याख्या ॥५८४॥
फुसति अणन्त० ॥ ९.१० ॥ ९७६ ॥ सरिसाए ओगाहणाए सरिमोगाहणो अर्णते जे तेण देसपदंसेण पुटाते असंखेज्जगुणा, 18 सिद्धानामएगस्स सिद्धम्म एगेणं विपमेण अणता पुट्ठा, मो य गिद्धो असंवेज्जपदेसो नेण तावड्या असंखज्जा रासी तेणं आदिल्लएणं वगाह: सव्वपदेसपुढे एनेण मिज्जमाणः ।।
सुखं च असरीरा॥९.११ ॥ २७७ ॥ केवलंमि लक्षणं भणित- सागारा अणगारं । इदाणि सुई भष्णति
णवि अन्थि मागु० ।। ९.९२ ।। ९८० ॥ सुरगण. ॥ ९-९५ ।। ९८१ ॥ तीयवट्टमाणाणायगाणं देवाणं विसयसुहं | का असम्भावपटुवणाए घतृण गमी कनो, सो अणंतगुणिने सिद्धस्स य एगस्स अमरीर सुहं गहियं, तं अर्णताणतभागीयं, तस्म | एगमागे णवि तुछ चव मुहगसीसहमिति, त्रिनियं वा माण- सुरगणसुहं समस्तं सब्बद्धापिंडितं एगम्मि आगासपदसे छदं| | तेणप्पमाणेणं सिद्स्स सुई मिज्जमाणं लोगालोगागासवि ण माति एगस्स, पणु यदि णाम तं केवली विदति तो किण्ण ओव|म्मेणं दरिसंति ?, माण्णनि, णन्थि नम्म उवमाण, किड पथि ?, जहा एमो महारण्णवासी मेच्छो रणे चिट्ठति, इओ य एगो या | राया आसण अवहरितो ने अचि पवेमिनो, तण दिट्ठो, सरकारऊणं बंदिओ, रण्णावेसो गगरणीओ),पच्छा उबगारिति गाढमुब- ५८४॥ चरितो, जहा राया तह चिट्ठति धवलघरादिभोगणं, विभामा, कालणं रणं सरितुमारद्धो, रण्णा विसज्जितो, ततो रमिणमा पुच्छन्ति-करिसं गगांति ?, मो बियाणनेवि तन्धोचमाभावात् ण सनकति जगरगुणे परिकहेतुं, एस दिद्रुतो, अयमेन्योवणओ, एवं सिद्धाणवि सोमबम्म विमयसुहे ण उवमा, नथि सरीरावयवरुदाहरणं, सो य मेच्छो जहा किचिमत्तेण ढुंगरादीणि दावेत्ता पत्तियावेति, एवं इहरपि किंचिमनण उदाहरणं क्रियते
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