Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 586
________________ नमस्कार शाणायोवत्रणवक्खाण पहाणगुण मौसमंगहकराणं । आवारदेसगाणं आयरियाणं णमो तेर्सि ॥ २॥ णायोपदेसगाणं दुविहमव-18| व्याख्यायो झायविप्पमुक्काणं । सततमुवझायाणं णमामि अज्झेण(ज्झप्प)सुद्धाणं ॥३॥ काय वायं च मणं इंदियाई च पंच दमयंति धारंति नमस्कारे पाटि ॥५८७॥ 14 पंचमार संजमपत्ती कसाए य ॥ ४॥ एवमादि । . एवं एयेण णमोक्कारस्य वत्थुनो भणिया । इदानी आक्षपः, 'क्षिप प्रेरणे' मर्यादोपदिष्टमर्थ आक्षिपति न सम्पगेतदिति, 18किमाक्षिपति, आह- द्विविधमेव सूत्रं- यद्वा संक्षपर्क यद्वा विस्तारकं, संक्षेपर्क सामाइक, विस्तारकं चतुर्दश पूर्वाणि, एवमेष नमदि स्कारः नापि संक्षेपनोपदिष्टः नापि विम्तरतः, एतावतोवरि कल्पना तृतीया नास्ति, नमो सिद्धाणति णिवुया गहिया, णमो साहूर्णति संसारत्था गहिया, एवं संखेवो, एथेगतरेणं कायचो, जेण ण कीरति तेण दुर्छत्ति आक्खेवो ॥दारं। इदार्णि पसिद्धी, 8 संखेवेण मए णमोककागे कतो, गुणावलोयणेणं, ण तुम जाणसि, कहं ?, अरहंता ताव णियमा माहू, साहू पुण सियरईता सिय दाणो अरहता, णमो साधृषति णमोक्कार करतण जे साहहिंतो अभहियगुणा अरहता ण तेण ते पूड्या होति, चिरुत्तरतर्ण है। अरहंता पूझ्या भवंति, साहविय सहाणे, एवं आयरिए विभासा, उबझाए त्रिमासा, एवमादि, एतेर्ण कारणेण पंचविहो णमोकारो कीरइ जुत्यो, किं च-पुत्र जे हेनु भणिया मग्गे अविष्यणासो आयार विणयता महायचन्ति, अरहंतेहिंतो मग्गो सिद्धेहितो अवि-१५ |प्पणासो आयरिएहिती आया उवज्झाएहितो विणयो माइहितो सहायतं, एतेणनि कारण पंचविहो णमोक्कारो जुत्तो, किं च-18||५८७॥ जं मणसि-न मंग्ववो न विन्थगेति, तंण सोमणंति, उक्तंच- संक्षेपोक्तं मति हति, विस्तरोक्तं न गृह्यते । संक्षेपविस्तरौ हित्वा, 12 में वक्तव्यं यद्विवक्षितम् ॥१॥

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