Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 590
________________ ग्यादि नमस्कार &राया मतो, सो राया जातो, मुनिरेण दोवि पचनियाणि । एवं सुकुलपच्चायाती तमूलागं च सिद्धिगमणं ।। अहवा वितिय नमस्कार व्याख्याया उदाहरण- महुरा गगरी, नत्थ सावओ सन्चजीवस्सरण्णो, तत्थ हडि चोरो णगरं मुसति, अण्णदा गहितो, सूले भिण्णो, पडियरहफल आरा॥५९१॥ वितिगावि से णज्जिहिनि, पच्छण्णा माणुसा पडितरंति, सो साबओ तस्स अदूरवत्ती वयति, सो मणति- सावगा! तुमंसि अ | णुकंपो, अहं तिसाइओमि, देहि मम पाणितं जा मरामी, सावओ मणति-इमं णमोक्कारं पढ़ जतो पाणितं आणमि, जदि | विस्तारेसि आणितंपि न देमि, सो नाए लोभवाए मणति, सावओ पाणितं महाय आगतो, तं वेलं पाहामिति णमोक्कारं पढ़तस्स विणिग्गतो जीवो, जक्खभवणे जक्खो जाओ, सो य सावओ तेहिं मणुस्सेहिं गहितो चोरमसदायगोत्ति, रणो णिवेदियं, मणति- एयपि मूले मिंदघ, आघातणं णिज्जति, जक्सो ओधि पउंजति, जाव सावगो य अप्पणो य सरीरं पेच्छति, ताहे. पध्वयं उप्पाडेऊण गगरस्म ओपि ठितो, ता तुम्भे मम एवं मट्टारकं ण जाणह , खमावेह, मा से सच्चे चूरेहामी, ताहे खाति। 18 देवणिसीयस्स पुच्वेण व से आयनणं कतं । एवं फलं भवति णमोकारेण परलोएवि । ॥ इति नमोकारनिज्जुत्ती सम्मत्ता ॥ वाणि सुत्तं भणति ५९॥ नदिमणुपोगदारं विहिवदुषघानियं च णातृण । कातूण पंचमंगलमारंभो होति सुत्तस्स ।। १०॥ १॥१०२५॥18 कतपंचनमोकारो करेनि सामाइयंति सोऽभिहितो। सामाझ्यंगमेव य ज सो सेसं तओ तुच्छ ॥१०॥२॥१२०६||

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