Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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नमस्कार व्याख्यायां
॥५६३॥
चाणके गोलविस वणिग्गामो तत्थ चमिओ माहणो, सोय मात्रओ, तस्स घरे साधू ठिता, पुत्तो से जातो सह दादाहिं, | तेण साधूण पाएगु पाडिओ, तेहि भणित-राया होहितिनि, तेण चितियं मा दोग्गतिं जाइस्सहत्ति दंता घट्टा, पुणोवि आयरियाणं कहितं, तेहिं भणिनं किं कज्जतु, एतादेवि वितरितो भविस्यतित्ति, उम्मुकबालभावेण चोदस विज्जाठाणाणि आगमियाणि, सोचि साओ मंतु हो, एगाओ भदमाहणाओ आणिया भज्जा से, अमदा कम्ही कोतुए भज्जा से मातिवरं गता, केति भर्गतिमातिविवाहे गना, तीसे य भगी खादाणियाणं दिण्गेल्लिपाओ, ता अलंकितभूसिताओ अगताओ, सच्चो परिजनो ताहि समं लचति सा एवं अच्छति, ती अदिती जाना, घरं आगता, अद्धितिला अच्छति णिबंध सिद्धं तेण नितियं णंदो पाडलिपुते देति तत्थ वच्चामि गतो, कतियपुणिमा पुत्रमत्थे आमणे पढने णित्रिो, तं च तस्प साल्लियातस्स राउलस्स सता ठविज्जति, सिद्धपुनो य गंदे समं तत्थ आगतो भगति -एस बंभणो णंदवसस्य छाये अकमिऊ ठितो, दासीए मणितेमग ! वितिए आमणे विमाहिति अस्त्विति चितिए आसणे कुंडि ठोति, एवं तनिए दंडगं चउत्थे गणेतियं. पंचमे जण्णावइयं, षिोति निच्छुडो, पादो पड़मो उक्खित्तो, भगति य-कोशन भृत्यैव नित्रमूलं, पुत्रैश्च मित्रैश्व विवृद्धशाखम् । उत्पाट्य नंदं परिवर्तयामि, हठाद् दुमं वायुरिवोग्रवेगः ॥ १ ॥ णिग्गतो. पुरिमं मग्गति, सुतं च गणं चित्रतरितो राया होहामिति, नंदस्स मोरपोसगा, तेमिं गामं गनो परिव्यायलिंगणं, ते महतरस्य घीढाए चंदपीयने डोहलो जातो, सो समुदाणतो गतो, ताणि तं पुच्छंति, जदि ममं दारगं देह तो णं पाएमि चंद, पडिसुर्णेति, पडमंडवो को तव पुणिमा, मज्झे लिंदे, मज्झ गते चंदे सम्वरमाहिं दहिं संजोएना आसणे घाले भरितं कर्त, सद्दाविता, कावति पियति य, उपरि पुरियो उच्छानि अब
परिणामिकी
बुद्धिः
।।५३३॥
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