Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

View full book text
Previous | Next

Page 563
________________ नमस्कार व्याख्यायां ॥५६४|| जीते पुसो जातो, संगति इमो धानुविला मम्मति मोय दास रमति, रायगीतो विभासा, चाणको य पडिएड, पेच्छति, ते तो, अम्हवि दिज्ज, भगति गाओ लहेहि, मा मारेज्ज केति, मगति--वीरमोज्जा पुहवी. जातं जया त्रिष्णाण से अन्थि, तो कस्मति दारहि कहि परिवायतो एस, अहं परिव्याओ, जामु जा ते रायाणं करोमि, चलिया, लोगो मिलितो, पाडलियुनं रोहितं देगे भग्गो परिव्वायो पुलियो, चंदउतो य पउमसरे णित्रुडो, इमो उपस्पृशति, सण्णाए भगति बोलियति, उनिण्णा णासंति, अग्गे भर्गति--चंदउतं पमिणीमंडे छुभिता रपओ जातो, पण्डा एंगेज जन्नकिसोरगगतेण सारे पुच्छितो भगति - एस उनसरे पत्रिहो, तो ते दिडो, ततो घोडगो चाणकस्स अलिविओ, तत्थेव खर्गी मुर्क, जले पत्रेसपा के पति ताव खरमेण दुहाकतो, चंद्रगुत्त बाहित्ता चढवितो, पलाया, पुच्छितो तंवेलं कि तुम चिंतितति १, मणति-भुवं एतं नेत्र सोम, अज्जो चेत्र जाणतित्ति, जातो जोगेण एस विपरिगमतित्ति, पच्छ । छुहाओ चागको तं ठनेता अतिगतो, वीमेतिमा एत्थं गज्जेज्जामत्ति, माहस व निरगस् पोई फालिने, दधिकवं महाय गतो, जिवितो, अण्णत्थ गामे रतिं समुदाणंति, धरिय पुत्त मंडाण विलेवितं देति उन्हें एकेण मज्श हत्यो छूढो, दड्डी रोवति, ताए य भण्गतिचाणक मंगलोसि, पुच्छि भगति--पामाणि षढयं घेवंति, गता हिमवंत, पइओ राया, तेग सर्व मितया जाता, मगति-सम समेण विमयामो रज्जे, ओरेन्वा एत्थ नगरं न पड़ति पविडो दिंडी, वत्थूणि जोएति, इंद्रकुमारियाओ, तासि तणएन ण पडति, माता जीणाविताओं, पडिने नगरं पाडलिपुतं रोहित, दो घम्मदुवारं मग्गति, एगेण रहेग जं तरसि तं जीणेहि, दो मज्जातो एगा कण्णा दव्वं न गीणेति, कृष्णा चंदनं पलोएति, मणिना जाहित्ति, ताए विलगांनीए चंद्रगुप्तस्स रहे णत्र अगा परिणामि-' की बुद्धिः |||५६४||

Loading...

Page Navigation
1 ... 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617