Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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नमस्कार उप्पत्तिया वैनयिकी कमजा पारिणामिकी, एसा चतुविधा पद्धी, पनमा नास्ति । योऽयों येन भावेन उत्पसुकामः तमयं तदेव औत्पाति व्याख्यायाला अनुगच्छति, अवध्यतीत्यर्थः, सोऽपूर्व अदृष्टः अश्रुतः अविदितः अविचालितः तस्मिभेव समये तमर्थ गृहाति, तस्य फलंदा ॥५४४||
अव्याहतं ण यण्णधा भवनि, पवंविधा उप्पत्तिया, मा जहा उप्पज्जति तथा इमाणि उदाहरणाणि मयंति
भरहसिलपण ॥ ०५४ ॥१४० ।। उज्जेणी गगरी जणवए अवतीए, तत्थ गडाणं गामो, तत्य एगस्स पडस्म मज्जा Mमना, तस्स य पुत्तो डहरो, नेण अन्ना आणिता, सा तम्य दारगस्स ण वकृति, तेण दारएण भणिय-मम लटुं न बट्टमि?, तहा ते | करेमि जहा मम पादेसु पडिमित्ति, नेण रनिं पिना सहसा मणितो-एस गोहोति, तेण णायं महिला विणवत्ति सिढिलो रागो जातो, सा भणति मा पुन ! एवं कोहि, नेण भणिनं-ण लट्ठ वट्टमि, भणति-पट्टेहामि, अहंपि लटुं करीहामि, सा बट्टितुमारद्धा,
गदा हा वापर मोहेनि २ भाणचा कहनि, पुट्ठोछाहिं दरिमति, ततो पिया से लज्जितो मोवि एवंविधोत्ति, नीस वर्ण धारागो जानो, मोवि अविभिनो पिनाए मम जेमेनि । अण्णदा पिताए सम उज्जेणि गतो, दिट्ठा पगरि, णिम्गता पिना पुत्तो,
पिता पुणोचि अतिगतो किंपि ठाविनगं विस्मरियति, मो सिप्पाए जदीए पुलिणे णगरि सव्वं आलिहति, तेण णगरी मचच्चग | लिहिया, ततो राया एति, नेण राया चारितो, भणितो-मा राउलमज्झेणं एहित्ति, रण्णा कोतुहल्लेणं पुच्छितो, सचच्चरा सव्वा | कहिया, रण्णा मणितो कहिं बससित्ति ?, तेण भणित-अमुगगामे, पिया से आगतो, ते गता, रायाए य एगृणगाणि पंच मंतिस-18 | ॥५४॥ वाणि, एग मम्गति, जो य सबप्पहाणो होज्जत्ति, चिनियं-एस होज्जत्ति, तस्स परिक्खणणिमित्तं इमाणि पेसति
सिलर्मिढकुक्कुडतिलवालयहत्थि अगडषणसंडे | परमनपत्तलेंडगखाइला पंच पिपरी च ॥ ९४१॥
ॐIESXXX RECENSE

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