Book Title: Agam 34 Nishith Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 6
________________ आगम सूत्र ३४, छेदसूत्र-१, निशीथ' उद्देशक/सूत्र सूत्र -७ जो साधु पुरुषचिह्न की चमड़ी का अपवर्तन करे, करवाए, करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त, जैसे सुख से सोनेवाले साँप का मुँह कोई खोले तो उसे साँप नीगल जाए ऐसे ऐसे मुनि का चारित्र नीगल जाता है - नष्ट हो जाता है। सूत्र-८ जो साधु-साध्वी जननांग को नाक से सूंघे या हाथ से मर्दन करके सूंघ ले या दूसरे के पास करवाए या दूसरे ऐसे दोष का सेवन करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । जैसे कोई झहरीली चीज सँघ ले तो मर जाए ऐसे अतिक्रम आदि दोष से ऐसा करनेवाला मुनि अपनी आत्मा को संयम से भ्रष्ट करता है। सूत्र -९ जो साधु जननेन्द्रिय को अन्य किसी योग्य स्रोत यानि वलय आदि छिद्र में प्रवेश करवाके शुक्र पुद्गल बाहर नीकाले, साध्वी अपने गुप्तांग में कदली फल आदि चीजे प्रवेश करवाके रज-पुद्गल बाहर नीकाले उस तरह से निर्घातन करे - करवाए या करनेवाले की अनमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र-१० जो साधु-साध्वी सचित्त प्रतिष्ठित यानि सचित्त पानी आदि के साथ स्थापित ऐसी चीज को सूंघे, सूंघाये या सूंघानेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र-११ जो साधु-साध्वी अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के पास चलने का मार्ग, पानी, कीचड़ आदि को पार करने का पुल या ऊपर चड़ने की सीड़ी आदि अवलम्बन खुद करे या करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त सूत्र - १२-१८ जो साधु-साध्वी अन्य तीर्थिक या गृहस्थ के पास पानी के निकाल का नाला, भिक्षा आदि स्थापन करने का सिक्का और उसका ढक्कन, आहार या शयन के लिए सूत की या डोर की चिलिमिलि यानि परदा, सूई, कातर, नाखून छेदनी, कान-खुतरणी आदि साधन का समारकाम करवाए, धार नीकलवाए । इसमें से कोई भी काम खुद करे, दूसरों के पास करवाए या वो दोष करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र-१९-२२ जो साधु-साध्वी प्रयोजन के सिवा (गृहस्थ के पास) सूई, कातर, कान खुतरणी, नाखून छेदिका की खुद याचना करे, दूसरे के पास करवाए या याचक की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - २३-२६ ___ जो साधु-साध्वी अविधि से सूई-कातर, नाखून छेदिका, कान खुतरणी की याचना स्वयं करे, अन्य से करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - २७-३० जो साधु-साध्वी अपने किसी कार्य के लिए सूई, कातर, नाखून छेदिका, कान खुतरणी की याचना करे, फिर दूसरे साधु-साध्वी, गृहस्थ को दे, दिलाए या देनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र-३१ जो साधु-साध्वी 'मुझे वस्त्र सीने के लिए सूई का खप-जरुरत है, काम पूरा होने पर वापस कर देंगे' ऐसा कहकर सूई की याचना करे । लाने के बाद उससे पात्र या अन्य चीज सीए यानि सीए-सीलाए या सीनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(निशीथ)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 6

Loading...

Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51