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आगम सूत्र ३४, छेदसूत्र-१, निशीथ'
उद्देशक/सूत्र पसली जिसे दो हाथ ईकट्ठे करके, ऐसी तीन पसली से ज्यादा पानी से शुद्धि करे यह दोष खुद करे, करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र-३१३
जो साधु-साध्वी अपरिहारिक हो यानि कि जिसे परिहार नाम का प्रायश्चित्त नहीं आया ऐसे शुद्ध आचार वाले हो ऐसे साधु-साध्वी, परिहार नाम का प्रायश्चित्त कर रहे साधु-साध्वी को कहे कि हे आर्य ! (हे आर्या !) चलो हम दोनो साथ अशन-पान-खादिम-स्वादिम ग्रहण करने के लिए जाए । ग्रहण करके अपनी-अपनी जगह आहार पान करेंगे, यदि वो ऐसा बोले, बुलवाए या बुलानेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त ।।
इस प्रकार उद्देशक ३-४ में बताए अनुसार किसी भी एक या ज्यादा दोष खुद सेवन करे, दूसरों के पास सेवन करवाए या उन दोष का सेवन करनेवाले की अनुमोदना करे तो उसे मासिक परिहार स्थान उद्घातिक नाम का प्रायश्चित्त आता है जिसे 'लघुमासिक' प्रायश्चित्त कहते हैं।
उद्देशक-४-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(निशीथ)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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