Book Title: Agam 34 Nishith Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 19
________________ आगम सूत्र ३४, छेदसूत्र-१, निशीथ' उद्देशक/सूत्र उद्देशक-५ 'निसीह'' सूत्र के इस उद्देशक में ३१४ से ३९२ इस तरह से कुल ७९ सूत्र हैं । जिसमें से किसी भी दोष का त्रिविध से सेवन करनेवाले को 'मासियं परिहाठाणं-उग्घातियं' नामका प्रायश्चित्त आता है। जिसे 'लघुमासिक प्रायश्चित्त' कहते हैं। सूत्र-३१४-३२४ जो साधु-साध्वी पेड़ की जड़-स्कंध के आसपास की सचित्त भूमि पर खड़े रहकर, एकबार या बार बार आसपास देखे, अवलोकन करे, खड़े रहे, शरीर प्रमाण शय्या करे, बैठे, पासा बदले, असन, पान, खादिम, स्वादिम रूप आहार करे, मल-मूत्र का त्याग करे, स्वाध्याय करे, सूत्र अर्थ तदुभय रूप सज्झाय का उद्देशके करे, बारबार सज्झाय पठन या समुद्देश करे, सज्झाय के लिए अनुज्ञा प्रदान करे, सूत्रार्थरूप स्वाध्याय वाचना दे, आचार्य आदि से दी गई स्वाध्याय, वाचना ग्रहण करे, स्वाध्याय की परावर्तना करे, इसमें से कोई भी कार्य खुद करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र- ३२५-३२६ जो साधु-साध्वी अपनी संघाटिका यानि की ओढ़ने का वस्त्र, जिसे कपड़ा कहते हैं वो - परतीर्थिक, गृहस्थ या श्रावक के पास सीलाई करवाए, उस कपड़े को दीर्घसूत्री करे, मतलब शोभा आदि के लिए लम्बा धागा डलवाए, दूसरों को वैसा करने के लिए प्रेरित करे या वैसा करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र- ३२७ जो साधु-साध्वी नीम के, परवर के या बिली के पान को अचित्त किए हए ठंडे या गर्म पानी में धोकर पीसकर खाए, खिलाए या खानेवाले की अनुमोदना करे । सूत्र- ३२८-३३५ जो साधु-साध्वी प्रातिहारिक का (शय्यातर आदि के पास से वापस देने का कहकर लाया गया प्रातिहारिक), सागरिक (अन्य किसी गृहस्थ) का पाद प्रोंछनक अर्थात् रजोहरण, दंड, लकड़ी, पाँव में लगा कीचड़ ऊखेड़ने की शलाखा विशेष या वाँस की शलाखा, उसी रात को या अगली सुबह को वापस कर दूँगा ऐसा कहकर लाने के बाद निर्दिष्ट वक्त पर वापस न करे यानि कि शाम के बजाय सुबह दे या सुबह के बजाय शाम को दे, दिलाए या देनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र-३३६-३३८ जो साधु-साध्वी प्रातिहारिक (शय्यातर), सागरिक (अन्य किसी गृहस्थ, या दोनों की शय्या, संथारा वापस देने के बाद वो शय्या, संथारा दूसरी बार आज्ञा लिए बिना (याचना किए सिवा) इस्तमाल करे यानि खुद उपभोग करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र-३३९ जो साधु-साध्वी शण-ऊनी, पोंड़ या अमिल के धागे बनाए । (किसी वस्त्र आदि के अन्तिम हिस्से में रहे धागे को लम्बा करे, शोभा बढ़ाने के लिए बुने, दूसरे के पास वैसा करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे ।) सूत्र- ३४०-३४८ जो साधु-साध्वी सचित्त, रंगीन, कईं रंग से आकर्षक, ऐसे सीसम की लकड़ी का, वांसा का या नेतर का बनाए, धारण करे, उपभोग करे, यह कार्य करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - ३४९-३५० जो साधु-साध्वी नए बसे हुए गाँव, नगर, खेड़, कब्बड़, मंडल, द्रोणमुख, पट्टण, आश्रम, घर, निगम, शहर, मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(निशीथ)" आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 19

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