Book Title: Agam 34 Nishith Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 30
________________ आगम सूत्र ३४, छेदसूत्र-१, निशीथ' उद्देशक/सूत्र उद्देशक-११ 'निसीह'' सूत्र के इस उद्देशक में ६५५ से ७४६ यानि ९२ सूत्र हैं । उसमें से किसी भी दोष का त्रिविधे सेवन करने से चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अनुग्घातियं' प्रायश्चित्त । सूत्र- ६५५-६६० जो साधु-साध्वी लोहा, ताम्र, जसत्, सीसुं, कासुं, चाँदी, सोना, जात्यरुपा, हीरे, मणि, मुक्ता, काँच, दाँत, शींग, चमड़ा, पत्थर (पानी रह सके ऐसे) मोटे वस्त्र, स्फटिक, शंख, वज्र (आदि) के पात्रा बनाए, धारण करे, उपभोग करे, लोहा आदि का पात्र बँधन करे (बनाए), धारण करे, उपभोग करे, अन्य से यह काम करवाए या वैसा करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र-६६१-६६२ जो साधु-साध्वी अर्थ योजन से ज्यादा दूर पात्र ग्रहण करने की उम्मीद से जाए या विघ्नवाला मार्ग या अन्य किसी कारण से उतनी दूर से लाकर पात्र दे तब ग्रहण करे, करवाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र-६६३-६६४ जो साधु-साध्वी धर्म की निंदा (अवर्णवाद) या अधर्म की प्रशंसा करे, करवाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त सूत्र-६६५-७१७ जो साधु-साध्वी अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के पाँव को एक या अनेकबार प्रमार्जन करे, करवाए, अनुमोदना करे, (इस सूत्र से आरम्भ करके) एक गाँव से दूसरे गाँव जाते हुए यानि कि विचरण करते हुए जो साधु-साध्वी अन्य तीर्थिक या गृहस्थ के मस्तक को आवरण करे, करवाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । (यहाँ ६६५ से ७१७ कुल-५३ सूत्र हैं । जो उद्देशक-३ के सूत्र १३३ से १८५ अनुसार जान लेना । फर्क केवल इतना कि इस ५३ दोष का सेवन अन्य तीर्थिक या गृहस्थ को लेकर किया, करवाया या अनुमोदन किया हो) सूत्र-७१८-७२३ जो साधु-साध्वी खुद को, दूसरों को डराए, विस्मीत करे यानि आश्चर्य पमाड़े, विपरीत रूप से दिखाए, या फिर जीव को अजीव या अजीव को जीव कहे, शाम को सुबह या सुबह को शाम कहे, इस दोष का खुद सेवन करे, दूसरों से करवाए या सेवन करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र- ७२४ जो साधु-साध्वी जिनप्रणित चीज से विपरीत चीज की प्रशंसा करे, करवाए, अनुमोदना करे । जैसे कि सामने किसी अन्यधर्मी हो तो उसके धर्म की प्रशंसा करे आदि तो प्रायश्चित्त । सूत्र - ७२५ जो साधु-साध्वी दो विरुद्ध राज्य के बीच पुनः पुनः गमनागमन करे, करवाए, करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - ७२६-७३३ ____ जो साधु-साध्वी दिन में भोजन करने की निंदा करे, रात्रि भोजन की प्रशंसा करे, दिन को लाया गया अशन-पान, खादिम-स्वादिम रूप आहार दूसरे दिन करे, दिन में लाया गया अशन-आदि रात को खाए, रात को (सूर्योदय से पहले) लाया गया अशन आदि सुबह में खाए, दिन में लाया गया अशन-आदि रात को खाए, आगाढ़ कारण बिना अशन-आदि आहार रात को संस्थापित करे यानि कि रख ले, इस तरह रखा गया अशन आदि आहार में से त्वचा-प्रमाण, भस्म प्रमाण या बिन्दु प्रमाण आहार खाए, इसमें से कोई दोष खुद करे, अन्य से करवाए या मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(निशीथ)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 30

Loading...

Page Navigation
1 ... 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51