Book Title: Agam 34 Nishith Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 33
________________ आगम सूत्र ३४, छेदसूत्र-१, निशीथ' उद्देशक/सूत्र अंगूठी या कुछ भी भरके बनाई चीज, संयोजना से निर्मित पत्ते निर्मित या कोरणी, गढ़, तख्ता, छोटे या बड़े जलाशय, नहेर, झील, वाव, छोटा या बड़ा तालाब, वावडी, सरोवर, जलश्रेणी या एकदूजे में जानेवाली जलधारा, वाटिका, जंगल, बागीचा, वन, वनसमूह या पर्वतसमूह, गाँव, नगर, निगम, खेड़ा, कसबा, पल्ली, द्रोणमुख, पाटण, खाई, धान्य क्षेत्र या संनिवेश, गाँव, नगर यावत् संनिवेश का किसी महोत्सव, मेला विशेष, गाँव, नगर यावत् संनिवेश का घात या विनाश, गाँव, नगर यावत् संनिवेश का पथ या मार्ग, गाँव, नगर यावत् संनिवेश का दाह, अश्व, हाथी, ऊंट, गौ, पाड़ा या सूवर का शिक्षण या क्रीड़ास्थल, अश्व, हाथी, ऊंट, गौ, पाड़ा या सूवर के युद्ध, गौ, घोड़े या हाथी के बड़े समुदायवाले स्थान, अभिषेक, कथा, मान-उन्मान, प्रमाण, बड़े आहत् (ठुमके) नृत्य, गीत, वाजिंत्र, उसके तल-ताल, त्रुटित घन मृदंग आदि के शब्द सुनाई देते हो ऐसे स्थान, राष्ट्रविप्लव, राष्ट्र उपद्रव, आपस में अंतर्देषजनित उपद्रव, वंश परम्परागत बैर से पैदा होनेवाला क्लेश, महायुद्ध, महासंग्राम, झगड़े, जोरों से बोलना आदि स्थान, कईं तरह के महोत्सव, ईन्द्र महोत्सव, स्त्री-पुरुष, स्थविर, युवान, किशोर आदि अलंकृत या निरलंकृत हो, गाते, बजाते, नाचते, हँसते, खेलते, मोह उत्पादक चेष्टा करते हो, विपुल अशन आदि का आपस में आदानप्रदान होता हो, खाना खाया जाता हो ऐसे स्थल, इन सभी स्थान को देखने की ईच्छा रखे । सूत्र - ७७५ जो साधु-साध्वी इहलौकिक या पारलौकिक, पहले देखे हुए या न देखे हुए, सुने हुए या न सुने हुए, जाने हुए या न जाने हुए ऐसे रूप के लिए आसक्त बने, रागवाले बने, गृद्धिवाले बने, अतिशय रक्त बने, किसी को आसक्त आदि करे, आसक्त आदि होनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - ७७६ जो साधु-साध्वी पहली पोरिसी में लाया गया अशन, पान, खादिम, स्वादिम अन्तिम पोरिसी तक स्थापन करे, रखे यानि चौथी पोरिसी में उपभोग करे, करवाए, करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - ७७७ जो साधु-साध्वी अर्थ योजन यानि दो कोष दूर से लाया गया अशन, पान, खादिम, स्वादिम समान आहार करे यानि दो कोष की क्षेत्र मर्यादा का उल्लंघन करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - ७७८-७८५ जो साधु-साध्वी गोबर या विलेपन द्रव्य लाकर दूसरे दिन, दिन में लाकर रात को, रात को लाकर दिन में या रात को लाकर रात में, शरीर पर लगे घा, व्रण आदि एक या बार-बार लिंपन करे, करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - ७८६-७८७ जो साधु-साध्वी अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के पास उपधि वहन करवाए और उसकी निश्रा में रहे (इन सबको) अशन-आदि (दूसरों को कहकर) दिलाए, दूसरों को वैसा करने के लिए प्रेरित करे, वैसा करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र-७८८ जो साधु-साध्वी गंगा, जमुना, सरयु, ऐरावती, मही उन पाँच महार्णव या महानदी महिने में दो या तीन बार उतरकर या तैरकर पार करे, करवाए या अनुमोदना करे । इस प्रकार उद्देशक-१२ में बताए अनुसार किसी भी कृत्य खुद करे-दूसरों के पास करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो चातुर्मासिक परिहारस्थान उद्घातिक अर्थात् लघु चौमासी प्रायश्चित्त आता है। उद्देशक-१२-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(निशीथ)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 33

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