Book Title: Agam 34 Nishith Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 47
________________ आगम सूत्र ३४, छेदसूत्र-१, निशीथ' उद्देशक/सूत्र सूत्र-१३५०-१३५५ जो साधु-साध्वी अविनित को, अपात्र या अयोग्य को और अव्यक्त यानि कि १६ साल का न हुआ हो उनको वाचना दे, दिलाए, अनुमोदना करे और विनित को, पात्र या योग्यतावाले को और व्यक्त यानि सोलह साल के ऊपर को वांचना न दे, न दिलाए, न देनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - १३५६ जो साधु-साध्वी दो समान योग्यतावाले हो तब एक को शिक्षा और वांचना दे और एक को शिक्षा या वाचना न दे । ऐसा खुद करे, दूसरों से करवाए, ऐसा करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र-१३५७ जो साध-साध्वी. आचार्य-उपाध्याय या रत्नाधिक से वाचना दिए बिना या उसकी संमति के बिना अपने आप ही अध्ययन करे, करने के लिए कहे या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - १३५८-१३६९ जो साधु-साध्वी अन्यतीर्थिक या गृहस्थ, पासत्था, अवसन्न, कुशील, नीतिय या संसक्त को वाचना दे, दिलाए, देनेवाले की अनुमोदना करे या उनके पास से सूत्रार्थ पढ़े, स्वीकार करे, स्वीकार करने के लिए कहे, स्वीकार करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । (नोंध-पासत्था, अवसन्न, कुशील, नीतिय और संसक्त का अर्थ एवं समझ उद्देशक-१३ के सूत्र ८३० से ८४९ में दी गई है वहाँ से समझ लेना ।) इस प्रकार उद्देशक-१९ में बताए किसी भी दोष का खुद सेवन करे, दूसरों से करवाए या ऐसा करनेवाले की अनुमोदना करे तो चातुर्मासिक परिहारस्थान उद्घातिक प्रायश्चित्त आता है, जिसे 'लघु चौमासी' प्रायश्चित्त भी कहते हैं। उद्देशक-१९-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(निशीथ)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 47

Loading...

Page Navigation
1 ... 45 46 47 48 49 50 51