Book Title: Agam 34 Nishith Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 49
________________ आगम सूत्र ३४, छेदसूत्र-१, 'निशीथ' उद्देशक/सूत्र (यहाँ पापस्थानक को पूर्व-पश्चात् सेवन के विषय में चतुर्भंगी है ।) १. पहले सेवन किए गए पाप की पहले आलोचना की, २. पहले सेवन किए गए पाप की बाद में आलोचना कर, ३. बाद में सेवन किए पाप की पहले आलोचना करे, ४. बाद में सेवन किए गए पाप की बाद में आलोचना करे । (पाप आलोचना क्रम कहने के बाद परिहार सेवन, करनेवाले के भाव को आश्रित करके चतुर्भगी बताता है ।) १. संकल्प काल और आलोचना के वक्त निष्कपट भाव, ३. संकल्पकाल में कपटभाव परंतु आलोचना लेते वक्त निष्कपट भाव, ४. संकल्पकाल और आलोचना दोनों वक्त कपट भाव हो । यहाँ संकल्प काल और आलोचना दोनों वक्त बिना छल से और जिसे क्रम में पाप का सेवन किया हो उस क्रम में आलोचना करनेवाले को अपने सारे अपराध इकट्ठे होकर उन्हें फिर से उसी प्रायश्चित्त में स्थापन करना जिसमें पहले स्थापन किए गए हो यानि उस परिहार तपसी उन्हें दिए गए प्रायश्चित्त को फिर से उसी क्रम में करने को कहे। सूत्र-१३८८-१३९३ छ, पाँच, चार, तीन, दो, एक परिहार स्थान यानि पाप स्थान का प्रायश्चित्त कर रहे साधु (साध्वी) के बीच यानि प्रायश्चित्त वहन शुरु करने के बाद दो मास जिसका प्रायश्चित्त आए ऐसे पाप स्थान का फिर से सेवन करे और यदि उस गुरु के पास उस पापकर्म की आलोचना की जाए तो दो मास से अतिरिक्त दूसरी २० रात का प्रायश्चित्त बढ़ता है । यानि कि दो महिने और २० रात का प्रायश्चित्त आता है। एक से यावत् छ महिने का प्रायश्चित्त वहन वक्त की आदि, मध्य या अन्त में किसी प्रयोजन विशेष से, सामान्य या विशेष आशय और कारण से भी यदि पाप-आचरण हुआ हो तो भी अ-न्यूनाधिक २ मास २० रात का ज्यादा प्रायश्चित्त करना पड़ता है। सूत्र - १३९४ दो महिने और बीस रात का परिहार स्थान प्रायश्चित्त वहन कर रहे साधु को आरम्भ से - मध्य में या अन्त में फिरसे भी बीच में कभी-कभी दो मास तक प्रायश्चित्त पूर्ण होने योग्य पापस्थान का प्रयोजन - बजह-हेतु सह सेवन किया जाए तो २० रात का ज्यादा प्रायश्चित्त आता है, मतलब कि पहले के दो महिने और २० रात के अलावा दूसरे दो महिने और २० रात का प्रायश्चित्त आता है, उसके बाद उसके जैसी ही गलती की हो तो अगले १० अहोरात्र का यानि कि कुल तीन मास का प्रायश्चित्त आता है। सूत्र-१३९५-१३९८ (ऊपर के सूत्र में तीन मास का प्रायश्चित्त बताया) उसी अनुसार फिर से २० रात्रि से १० रात्रि के क्रम से बढ़ते-बढ़ते चार मास, चार मास बीस दिन, पाँच मास यावत् छ मास तक प्रायश्चित्त आता है लेकिन छह मास से ज्यादा प्रायश्चित्त नहीं आता । सूत्र-१३९९-१४०५ छ मास प्रायश्चित्त योग परिहार-पापस्थान का सेवन से छ मास का प्रायश्चित्त आता है वो प्रायश्चित्त वहन करने के लिए रहे साधु बीच में मोह के उदय से दूसरा एकमासी प्रायश्चित्त योग्य पाप सेवन करे फिर गुरु के पास आलोचना करे तब दूसरे १५ दिन का प्रायश्चित्त दिया जाए यानि कि प्रयोजन-आशय से कारण से छ मास के आदि, मध्य या अन्त में गलती करनेवाले को न्यूनाधिक ऐसा कुछ देढ़ मास का ज्यादा प्रायश्चित्त आता है। उसी तरह पाँच, चार, तीन, दो, एक मास के प्रायश्चित्त वहन करनेवाले को कुल देढ़ मास का ज्यादा प्रायश्चित्त आता है वैसा समझ लेना। सूत्र-१४०६-१४१४ देढ़ मास प्रायश्चित्त योग्य पाप सेवन के निवारण के लिए स्थापित साधु को वो प्रायश्चित्त वहन करते वक्त मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(निशीथ)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 49

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