Book Title: Agam 34 Nishith Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 44
________________ आगम सूत्र ३४, छेदसूत्र-१, निशीथ' उद्देशक/सूत्र उद्देशक-१८ "निसीह'' सूत्र के इस उद्देशक में १२६० से १३३२ यानि कि कुल-७३ सूत्र हैं । जिसमें कहे गए किसी भी दोष का त्रिविधे सेवन करनेवाले को चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं उग्घातियं' नाम का प्रायश्चित्त आता है। सूत्र - १२६० जो साधु-साध्वी अति आवश्यक प्रयोजन बिना नौका-विहार करे, करवाए, करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र-१२६१-१२६४ जो साधु-साध्वी दाम देकर नाँव खरीद करे, उधार लेकर, परावर्तीत करके या छीनकर उस पर आरोहण करे यानि खरीदना आदि के द्वारा नौका विहार करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त ।। (उद्देशक-१४ के सूत्र ८६३ से ८६६ में इन चार दोष का वर्णन किया है इस प्रकार समझ लेना, फर्क इतना कि वहाँ पात्र के लिए खरीदना आदि दोष बताए हैं वो यहाँ नौका-नाँव के लिए समझ लेना ।) सूत्र-१२६५-१२७१ जो साधु-साध्वी (नौका-विहार के लिए) नाव को स्थल में से यानि किनारे से पानी में, पानी में से किनारे पर मँगवाए, छिद्र आदि कारण से पानी से भरी नाँव में से पानी बाहर नीकाले, कीचड़ में फँसी नाव बाहर नीकाले, आधे रास्ते में दूसरा नाविक मुझे लेने आएगा वैसा कहकर यानि बड़ी नाँव में जाने के लिए छोटी नाँव में बैठे, ऊर्ध्व एक योजन या आधे योजन से ज्यादा लम्बे मार्ग को पार करनेवाली नौका में विहार करे-इन सभी दोष का सेवन करे, करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र-१२७२ जो साधु-साध्वी, नाँव-नौका को अपनी ओर लाने की प्रेरणा करे, चलाने के लिए कहे या दूसरों से चलाई जाती नाँव को रस्सी या लकडे से पानी से बाहर नीकाले ऐसा खुद करे, करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - १२७३ जो साधु-साध्वी नाँव को हलेसा, वाँस की लकड़ी के द्वारा खुद चलाए, दूसरों से चलवाए या चलानेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - १२७४-१२७५ जो साधु-साध्वी नाँव में भरे पानी को नौका के सम्बन्धी पानी नीकालने के बरतन से आहारपात्र से या मात्रक-पात्र से बाहर नीकाले, नीकलवाए या अनुमोदना करे, नाँव में पड़े छिद्र में से आनेवाले पानी को, ऊपर चड़ते हुए पानी से डूबती हुई नाँव को बचाने के लिए हाथ, पाँव, पीपल के पत्ते, घास, मिट्टी, वस्त्र या वस्त्रखंड़ से छिद्र बन्द करे, करवाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - १२७६-१२९१ जो साधु-साध्वी नौका-विहार करते वक्त नाँव में हो, पानी में हो, कीचड़ में हो या किनारे पर हो उस वक्त नाँव में रहे-पानी में रहे, कीचड़ में रहे या किनारे पर रहा किसी दाता अशन आदि वहोरावे और यदि किसी साधुसाध्वी अशन, पान, खादिम, स्वादिम ग्रहण करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । (यहाँ कुल १६ सूत्र द्वारा १६-भेद बताए हैं । जिस तरह नाँव में रहे साधु को नाँव में, जल में, कीचड़ में या किनारे पर रहे दाता अशन आदि दे तब ग्रहण करना उस तरह से पानी में रहे, कीचड़ में रहे, किनारे पर रहे साधुसाध्वी को पहले बताए गए उस चारों भेद से दाता दे और साधु-साध्वी ग्रहण करे ।) मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(निशीथ)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 44

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