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आगम सूत्र ३४, छेदसूत्र-१, निशीथ'
उद्देशक/सूत्र उद्देशक-१३ "निसीह'' सूत्र के इस उद्देशक में ७८९ से ८६२ यानि कि कुल ७४ सूत्र हैं । इसमें बताने के अनुसार किसी भी दोष का त्रिविधे सेवन करनेवाले को चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं उग्घातियं प्रायश्चित्त आता है। सूत्र - ७८९-७९५
जो साधु-साध्वी सचित्त, स्निग्ध यानि कि सचित्त जल से कुछ गीलापन, सचित्त रज, सचित्त मिट्टी, सूक्ष्म त्रस जीव से युक्त ऐसी पृथ्वी, शीला, या टेकरी पर खड़ा रहे, बैठे या सोए, ऐसा दूसरों के पास करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - ७९६-७९९
जो साधु-साध्वी यहाँ बताए अनुसार स्थान पर बैठे, खड़े रहे, बैठे या स्वाध्याय करे । अन्य को वैसा करने के लिए प्रेरित करे या वैसा करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त ।
जहाँ धुणा का निवास हो, जहाँ धुणा रहते हो ऐसे या अंड-प्राण, सचित्त बीज, सचित्त वनस्पति, हिमसचित्त, जलयुक्त लकड़े हो, अनन्तकाय कीटक, मिट्टी, कीचड़, मकड़े की जालयुक्त स्थान हो, अच्छी तरह से बँधा न हो. ठीक न रखा हो, अस्थिर हो या चलायमान हो ऐसे स्तम्भ, घर, ऊपर की देहली, ऊखलभूमि, स्नानपीठ, तृण या पत्थर की भींत, शीला, मिट्टीपिण्ड, मंच, लकड़े आदि के बने स्कंध, मंच, मांडवी या माला, जीर्ण ऐसे छोटे या बड़े घर, इस सर्व स्थान पर बैठे, सोए, खड़ा रहे या स्वाध्याय करे । सूत्र-८००-८०४
___ जो साधु-साध्वी अन्य तीर्थिक या गृहस्थ को शिल्पश्लोक, पासा, निमित्त या सामुद्रिक शास्त्र, काव्य-कला, भाटाई शीखलाए, सरोष, कठिन, दोनों तरह के वचन कहे, या अन्यतीर्थिक की आशातना करे, दूसरों के पास यह काम करवाए या वैसा करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र-८०५-८१७
जो साधु-साध्वी अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के साथ नीचे बताए अनुसार कार्य करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । कौतुककर्म, भूतिकर्म, देवआह्वान पूर्वक प्रश्न पूछने, पुनः प्रश्न करना, शुभाशुभ फल समान उत्तर कहना, प्रति उत्तर कहना, अतित, वर्तमान या आगामी काल सम्बन्धी निमित्त-ज्योतिष कथन करना, लक्षण ज्योतिष या स्वप्न फल कहना, विद्या-मंत्र या तंत्र प्रयोग की विधि बताना, मार्ग भूले हए, मार्ग न जाननेवाले, अन्य मार्ग पर जाते हो उसे मार्ग पर लाए, ट्रॅके रास्ते दिखाए, दोनों रास्ते दिखाए, पाषाण-रस या मिट्टी युक्त धातु दिखाए, निधि दिखाए तो प्रायश्चित्त । सूत्र-८१८-८२५
जो साधु-साध्वी पात्र, दर्पण, तलवार, मणी, सरोवर आदि का पानी, प्रवाही गुड़, तैल, मधु, घी, दारू या चरबी में अपना मुँह देखे, दूसरों को देखने के लिए कहे, मुँह देखनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र-८२६-८४७
जो साधु-साध्वी पासत्था, अवसन्न, कुशील, नितीय, संसक्त, काथिक, प्राश्निक, मामक, सांप्रसारिक यानि कि गृहस्थ को वंदन करे, प्रशंसा करे, करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त ।
पासत्था-ज्ञान, दर्शन, चारित्र के निकट रहके भी उद्यम न करे । कशील-निंदित कर्म करे. अवसन्न सामाचारी उलट-सलट करे, चारित्र विराधना दोषयक्त, अहाछंद, स्वच्छंद, नीतिय, नित्यपिंड खानेवाला, काथिकअशन आदि के लिए या प्रशंसा के लिए कथा करे, प्राश्निक-सावध प्रश्न करे, मामग-वस्त्र-पात्र आदि मेरा-मेरा करे, सांप्रसारिक-गृहस्थ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(निशीथ)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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