Book Title: Agam 34 Nishith Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 41
________________ आगम सूत्र ३४, छेदसूत्र-१, निशीथ' उद्देशक/सूत्र सूत्र - १०९४-१०९५ जो साधु-साध्वी अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के साथ बैठकर, या दो-तीन या चारों ओर से अन्यतीर्थिक आदि हो उसके बीच बैठकर आहार करे, करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र-१०९६ जो साधु-साध्वी आचार्य-उपाध्याय (या रत्नाधिक) के शय्या-संथारा को पाँव से संघट्टा करे यानि कि उस पर लापरवाही से पाँव आए तब हाथ द्वारा उसे छू कर यानि अपने दोष की माँफी माँगे बिना चले जाए, दूसरों को वैसा करने के लिए प्रेरित करे या वैसा करनेवाले को साधु-साध्वी की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - १०९७ जो साधु-साध्वी (शास्त्रोक्त) प्रमाण या गणन संख्या से ज्यादा उपधि रखे, रखवाए या रखनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र-१०९८-११०८ जो साधु-साध्वी सचित्त पृथ्वी पर.. आदि.. पर मल-मूत्र का त्याग करे, करवाए, करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । (संक्षेप में कहा जाए तो विराधना हो वैसी जगह में मल-मूत्र परठवे, ऐसा इस ११ सूत्र में बताते हैं । १३वे उद्देशक के सूत्र ७८९ से ७९९ इन ११ सूत्र में यह वर्णन किया है, उस प्रकार समझ लेना । फर्क केवल इतना कि उन हर एक जगह पर मल-मूत्र का त्याग करे ऐसे सम्बन्ध प्रत्येक दोष के साथ जोडना ।) इस प्रकार उद्देशक-१६ में बताए अनुसार के किसी भी दोष का खुद सेवन करे, दूसरों के पास सेवन करवाए या अनुमोदना करे तो चातुर्मासिक परिहार स्थान उद्घातिक यानि 'लघु चौमासी' प्रायश्चित्त आता है। उद्देशक-१६-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(निशीथ)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 41

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