Book Title: Agam 34 Nishith Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 29
________________ आगम सूत्र ३४, छेदसूत्र-१, 'निशीथ' उद्देशक/सूत्र संकल्प वाला हो, धृति और बल से समर्थ हो, या न हो तो भी सूर्यास्त या सूर्यास्त हुआ माने, संशयवाला बने, संशयित हो तब भोजन करे, करवाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त और फिर यदि ऐसा माने कि सूर्य नीकला ही नहीं या अस्त हो गया है तब मुँह में - हाथ में या पात्र में जो अशन आदि विद्यमान हो उसका त्याग करे, मुख, हाथ, पात्रा की शुद्धि करे तो अशन आदि परठने के बाद भी विराधक नहीं लेकिन यदि आज्ञा उल्लंघन करके खाएखिलाए या खानेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - ६४२ जो साधु-साध्वी रात को या शाम को पानी या भोजन का ओड़कार आए यानि उबाल आए तब उसे मुँह से बाहर नीकालने की बजाय गले में उतार दे, नीगलने का कहे, नीगलनेवाले की अनुमोदना करे तो (रात्रि भोजन दोष लगने से) प्रायश्चित्त। सूत्र - ६४३-६४६ जो साधु-साध्वी ग्लान-बीमार हो ऐसे सुने, जानने के बाद भी उस ग्लान की स्थिति की गवेषणा न करे, अन्य मार्ग या विपरीत मार्ग में चले जाए, वैयावच्च करने के लिए उद्यत होने के बाद भी ग्लान का योग्य आहार, अनुकूल वस्तु विशेष न मिले तब दूसरे साधु, साध्वी, आचार्य आदि को न कहे, खुद कोशीश करने के बाद भी अल्प या अपर्याप्त चीज मिले तब इतनी अल्प चीज से उस ग्लान को क्या होगा ऐसा पश्चात्ताप न करे, न करवाए या न करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - ६४७-६४८ जो साधु-साध्वी प्रथम प्रावृट्काल यानि की आषाढ़-श्रावण बीच में, वर्षावास में निवास करने के बाद एक गाँव से दूसरे गाँव विहार करे, करवाए, करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - ६४९-६५० जो साधु-साध्वी अपर्युषणा में पर्युषणा करे, पर्युषणा में अपर्युषणा करे, पर्युषणा में पर्युषणा न करे, (अर्थात् नियत दिन में संवत्सरी न करे) न करवाए, न करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - ६५१-६५३ जो साधु-साध्वी पर्युषण काल में (संवत्सरी प्रतिक्रमण के वक्त) गाय के रोम जितने भी बाल धारण करे, रखे, उस दिन थोड़ा भी आहार करे, (कुछ भी खाए-पीए), अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के साथ पर्युषणा करे (पर्युषणाकरण सुनाए) करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र-६५४ जो साधु-साध्वी पहले समवसरण में यानि कि वर्षावास में (चातुर्मास में) पात्र या वस्त्र आदि ग्रहण करेकरवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । इस प्रकार उद्देशक-१० में कहे हुए कोई कृत्य करे, करवाए या अनुमोदना करे तो चातुर्मासिक परिहारस्थान अनुद्घातिक अर्थात् 'गुरु चौमासी प्रायश्चित्त' आता है। उद्देशक-१०-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(निशीथ)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 29

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