Book Title: Agam 34 Nishith Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 23
________________ आगम सूत्र ३४, छेदसूत्र-१, निशीथ' उद्देशक/सूत्र शरीर गन्धदार करे या शोभा बढ़ाए ऐसा वो खुद करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - ५५१-५५३ जो साधु (साध्वी) मैथुन सेवन की ईच्छा से किसी पशु या पंछी के पाँव, पंख, पूँछ या सिर पकड़कर उसे हिलाए, संचालन करे, गुप्तांग में लकड़ा, वांस की शलाखा, ऊंगली या धातु की शलाका का प्रवेश करवाके, हिलाए, संचालन करे, पशु-पंछी में स्त्री (या पुरुष) की कल्पना करके उसे आलिंगन करे, दढ़ता से आलिंगन करे, सर्वत्र चुंबन करे, करवाए, करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - ५५४-५५९ ___ जो साधु स्त्री के साथ (साध्वी-पुरुष के साथ) मैथुन सेवन की ईच्छा से अशन, पान, खादिम, स्वादिम रूप चतुर्विध आहार, वस्त्र, पात्र, कंबल, रजोहरण, सूत्रार्थ, (इन तीनों में से कोई भी) दे या ग्रहण करे, (खुद करे, अन्य से करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे) तो प्रायश्चित्त सूत्र- ५६० जो साधु स्त्री के साथ (साध्वी पुरुष के साथ) मैथुन की ईच्छा से किसी भी इन्द्रिय का आकार बनाए, तसवीर बनाए या हाथ आदि से ऐसे काम की चेष्टा करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । इस प्रकार उद्देशक-७ में कहे अनुसार किसी भी एक या ज्यादा दोष का सेवन करे, करवाए या अनुमोदना करे तो वो साधु-साध्वी का ''चातुर्मासिक परिहार स्थान अनुद्घातिक'' नाम का प्रायश्चित्त आता है जो 'गुरु चौमासी'' प्रायश्चित्त नाम से जाना जाता है। उद्देशक-७-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(निशीथ)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 23

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