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आगम सूत्र ३४, छेदसूत्र-१, निशीथ'
उद्देशक/सूत्र सूत्र - १५१-१५६
जो साधु-साध्वी अपने शरीर में रहे गुमड़, फोल्ले, मसा, भगंदर आदि व्रण किसी तीक्ष्ण शस्त्र द्वारा एक या कईं बार छेदन करे, छेदन करके खून नीकाले या विशुद्धि-सफाई करे, लहू या पानी नीकलने बाद अचित्त ऐसे शीत या उष्ण जल से एक या कईं बार प्रक्षालन करे, प्रक्षालन करने के बाद या कई बार उस पर लेप या मल्हम लगाए, उसके बाद तेल, घी, मक्खन या चरबी से एक या कईं बार मर्दन करे, उसके बाद किसी भी तरह के धूप से वहाँ धूप करे या सुगंधी करे । इसमें से किसी भी दोष का सेवन करे, करवाए या करनेवाले के अनुमोदे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - १५७
जो साधु-साध्वी अपनी गुदा में या नाभि में रहे क्षुद्र या छोटे जीव कृमि आदि को ऊंगली डालकर बाहर नीकाले, नीकलवाए या नीकालनेवाले की अनुमोदना करे । सूत्र-१५८
जो साधु-साध्वी अपने बढ़े हुए नाखून के आगे के हिस्से को काटे, शोभा बढ़ाने के लिए संस्कार करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - १५९-१६३
जो साधु-साध्वी अपने बढ़े हुए जाँघ के, गुह्य हिस्से के, रोमराजि के, बगल के, दाढ़ी-मूंछ आदि के बाल काटे, कटवाए, काटनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - १६४-१६६
जो साधु-साध्वी अपने दाँत एक या अनेकबार (नमक-क्षार आदि से) घिसे, धुए, मुँह के वायु से फूंक मारकर या रंगने के द्रव्य से रंग दे यह काम खुद करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - १६७-१७२
जो साधु-साध्वी अपने होठ एक बार या बार-बार प्रमार्जन करे, धोए, परिमर्दन करे, तेल, घी, चरबी या मक्खन से मर्दन-मालीश करे, लोघ्र (नामक द्रव्य), कल्क (कईं द्रव्यमिश्रित द्रव्य विशेष), चूर्ण (गन्धदार द्रव्य), वर्ण (अबील आदि द्रव्य) या पद्म चूर्ण से मर्दन करे, अचित्त ऐसे ठंड़े या गर्म पानी से धोए, रंग दे, यह कार्य करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - १७३-१७४
जो साधु-साध्वी अपने लम्बे बढ़े हुए श्मश्रू-मूंछ के बाल, आँख की भँवर के बाल काटे, शोभा बढ़ाने के लिए ठीक करे, दूसरों के पास ऐसा करवाए या ऐसा करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - १७५-१८०
जो साधु-साध्वी अपनी आँख को एकबार या कईं बार (सूत्र १६७ से १७२ में होठ के बारे में बताया उस तरह) धुए, परिमर्दन करे, मालीश करे, मर्दन करे, प्रक्षालन करे, रंग दे, यह काम खुद करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - १८१-१८२
जो साधु-साध्वी अपने लम्बे बढ़े भ्रमर के बाल, बगल के बाल कटवाए या शोभा बढ़ाने के लिए ठीक करे, दूसरों के पास वैसा करवाए या अनुमोदना करे । सूत्र - १८३
जो साधु-साध्वी अपने आँख, कान, दाँत, नाखून का मैल नीकाले, नीकलवाए या वैसा करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(निशीथ)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद”
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