Book Title: Agam 34 Nishith Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ आगम सूत्र ३४, छेदसूत्र-१, निशीथ' उद्देशक/सूत्र उद्देशक-३ "निसीह सूत्र के इस तीसरे उद्देशक में ११८ से १९६ इस प्रकार कुल ७९ सूत्र हैं । जिसमें बताए हुए दोष में किसी भी दोष का त्रिविधे सेवन करनेवाले को 'उग्घातियं नाम का प्रायश्चित्त आता है जिसे लघुमासिक प्रायश्चित्त रूप से पहचाना जाता है। सूत्र-११८-१२९ जो साधु-साध्वी धर्मशाला, उपवन, गाथापति का कुल या तापस के निवास स्थान में रहे अन्यतीर्थिक या गृहस्थ ऐसे किसी एक पुरुष, कईं पुरुष या एक स्त्री, कईं स्त्रियों के पास १. दीनता पूर्वक (ओ भाई ! ओ बहन मुझे कोई दे उस तरह से) २. कुतूहल से, ३. एक बार सामने से लाकर दे तब पहले 'ना' कहे, फिर उसके पीछेपीछे जाकर या आगे-पीछे उसके पास खडा रहकर या बक-बक करके (जैसे कि ठीक है अब तम ले आए हो तो, रख ले ऐसा बोलना) इन तीनों में से किसी भी तरह से अशन-पान-खादिम-स्वादिम इन चार तरह के आहार में से कुछ भी याचना करे या माँगे, याचना करवाए या उस तरह से याचना करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - १३० जो साधु-साध्वी गृहस्थ कुल में अशन-पान आदि आहार ग्रहण करने की ईच्छा से प्रवेश करे मतलब भिक्षा के लिए जाए तब गृहस्वामी निषेध करे तो भी दूसरी बार उसके कुल-घर में आज्ञा लिए बिना प्रवेश करे-करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र-१३१ जो साधु-साध्वी संखड़ी अर्थात् जहाँ कईं लोग भोजन के लिए ईकटे हुए हो यानि कि भोजन समारम्भ हो (छ काय जीव विराधना की विशेष संभावना होने से) उस जगह अशन, पान, खादिम, स्वादिम को लेने के लिए जाए, दूसरों को भेजे या जानेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - १३२ जो साधु-साध्वी गृहस्थकुल-घर में भिक्षा के लिए जाए तब तीन घर (कमरे) से ज्यादा दूर से लाए गए शन, पान, खादिम, स्वादिम दे (वहोरावे) तब जो कोई वो अशन आदि ग्रहण करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त। सूत्र-१३३-१३८ जो साधु-साध्वी अपने पाँव के (मैल निवारण या शोभा बढ़ाने के लिए) एक या बारबार प्रमार्जन करे, साफ करे, पाँव की मालिश करे, तेल, घी, मक्खन या चरबी से मर्दन करे, लोघ्र (नामका एक द्रव्य), कल्क (कईं द्रव्य मिश्रित द्रव्य), चूर्ण (गन्धदार द्रव्य), वर्ण (अबील आदि द्रव्य) । कमल चूर्ण, उसके द्वारा मर्दन करे, अचित्त किए गए ठंड़े या गर्म पानी से प्रक्षालन करे उससे पहले किसी द्रव्य से लींपकर सूखाने के लिए फूंक मारे या रंग दे यह सब करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - १३९-१४४ जो साधु-साध्वी अपनी काया-यानि की शरीर को एक या ज्यादा बार प्रमार्जन करे, मालीश करे, मर्दन करे, प्रक्षालन करे, रंग दे (यह सब सूत्र १३३ से १३८ की तरह समझ लेना) तो प्रायश्चित्त । सूत्र-१४५-१५० जो साधु-साध्वी अपने व्रण जैसे कि कोढ़, दाद, खुजली, गंडमाल, लगने से या गिरने से होनेवाले झखम आदि का (सूत्र १३३ से १३८ में बताने के अनुसार) प्रमार्जन, मर्दन, प्रक्षालन, रंगना, मालीश आदि करे, करवाए या अनुमोदना करे। मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(निशीथ)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 13

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51