Book Title: Agam 34 Nishith Sutra Hindi Anuwad Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar View full book textPage 8
________________ आगम सूत्र ३४, छेदसूत्र-१, निशीथ' उद्देशक/सूत्र सूत्र - ५०-५५ जो साधु-साध्वी (फटे हुए वस्त्र को सीए जाए तो भी) बिना कारण एक गाँठ लगाए, फटे वस्त्र होने से या कारण वश होकर गाँठ लगानी पड़े तो भी तीन से ज्यादा गाँठ लगाए, फटे हुए दो कपड़ों को एक साथ जुड़े, फटे कपड़ों की कारण से परस्पर तीन से ज्यादा जगह पर साँधे लगाए, अविधि से कपड़ों के टुकड़े को जोड़ दे, अलगअलग तरह के कपड़ों को जोड़ दे । यह सब खुद करे, अन्य के पास करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र-५६ जो साधु-साध्वी ज्यादा वस्त्र ग्रहण करे और वो ग्रहण किए वस्त्र को देढ़ मास से ज्यादा वक्त रखे, रखवाए या जो रखे उसकी अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - ५७ जो साधु-साध्वी जिस घर में रहे हो वहाँ अन्य तीर्थिक या गृहस्थ के पास धुंआ करवाए, करे या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - ५८ ____ जो साधु-साध्वी (आधाकर्म आदि मिश्रित ऐसा) पूतिकर्म युक्त आहार (वस्त्र, पात्र, शय्या आदि) खुद उपभोग करे, अन्य के पास करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । हस्तकर्म दोष से लेकर इस पूतिकर्म तक के जो दोष बताए उसमें से किसी भी दोष का सेवन करे, करवाए या अनुमोदना करे तो वो साधु या साध्वी को मासिक परिहार स्थान अनुद्घातिक नाम का प्रायश्चित्त आए जिसके लिए दूसरे उद्देशा के आरम्भ में कहे गए भाष्य में गुरुमासिक प्रायश्चित्त शब्द का प्रयोग किया है। उद्देशक-१-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(निशीथ)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 8Page Navigation
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