Book Title: Agam 34 Nishith Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 5
________________ उद्देशक/सूत्र आगम सूत्र ३४, छेदसूत्र-१, निशीथ' [३४] निशीथ छेदसूत्र-१-हिन्दी अनुवाद उद्देशक-१ 'निसीह' सूत्र के प्रथम उद्देशा में १ से ५८ सूत्र हैं । यह प्रत्येक सूत्र के अनुसार दोष या गलती करनेवाले को 'अनुग्घातियं' नाम का प्रायश्चित्त आता है ऐसा सूत्र के अन्त में बताया है। दूसरे उद्देशक के आरम्भ में निसीह-भास' की दी गई गाथा के अनुसार पहले उद्देश के दोष के लिए 'गुरुमासं' - गुरुमासिक नाम का प्रायश्चित्त बताया है। मतलब कि पहले उद्देशो में बताई हुई गलती करनेवाले को गुरमासिक प्रायश्चित्त आता है। सूत्र-१ जो साधु या साध्वी खुद हस्तकर्म करे, दूसरों के पास करवाए या अन्य करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । उपस्थ विषय में जननांग सम्बन्ध से हाथ द्वारा जो अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार, अनाचार का आचरण करना । यहाँ हस्त विषयक मैथुन क्रिया सहित हाथ द्वारा होनेवाली सभी वैषयिक क्रियाएं समझ लेना। सूत्र-२ जो साधु-साध्वी अंगादान, जनन अंग का लकड़ी के टुकड़े, वांस की सलाखा, ऊंगली या लोहा आदि की सलाखा से संचालन करे अर्थात् उत्तेजित करने के लिए हिलाए, दूसरों के पास संचालन करवाए या संचालन करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । जैसे सोए हए शेर को लकड़ी आदि से तंग करे तो वो संचालक को मार डालता है ऐसे जननांग का संचालन करनेवाले का चरित्र नष्ट होता है। सूत्र-३ जो साधु-साध्वी जननांग का मामूली मर्दन या विशेष मर्दन खुद करे, दूसरों के पास करवाए या वैसा करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त - जैसे सर्प उस मर्दन का विनाश करते हैं। ऐसे जननांग का मर्दन करनेवाले के चारित्र का ध्वंस होता है। सूत्र-४ जो साधु-साध्वी जननांग को तेल, घी, स्निग्ध पदार्थ या मक्खन से सामान्य या विशेष अभ्यंगन मर्दन करे, करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । जैसे प्रज्वलित अग्नि में घी डालने से सब सुलगता है ऐसे जननांग का मर्दन चारित्र का विनाश करता है। सूत्र-५ जो साधु-साध्वी जननांग को चन्दन आदि मिश्रित गन्धदार द्रव्य, लोघ्र नाम के सुगंधित द्रव्य या कमलपुष्प के चूर्ण आदि उद्वर्तन द्रव्य से सामान्य या विशेष तरह से स्नान करे, पीष्टी या विशेष तरह के चूर्ण द्वारा सामान्य या विशेष मर्दन करे, करवाए या मर्दन करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । जिस तरह धारवाले शस्त्र के पुरुषन से हाथ का छेद हो ऐसे गुप्त इन्द्रिय के मर्दन से संयम का छेद हो । सूत्र-६ जो साधु-साध्वी जननांग को ठंडे या गर्म किए पानी से सामान्य या विशेष से प्रक्षालन करे यानि खुद धोए, दूसरों के पास धुलवाए या धोनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । जैसे नेत्र दर्द होता हो और कोई भी दवाई मिश्रित पानी से बार-बार धोने से दर्द दुःसा बने ऐसे गुप्तांग का बार-बार प्रक्षालन मोह का उदय पैदा करता है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(निशीथ)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 5

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