Book Title: Adhyatmagyan Praveshika
Author(s): Atmanandji Maharaj
Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba

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Page 7
________________ १. २. ३. ४. दानधर्म मनुष्यभव सुखका स्वरूप और उसकी प्राप्ति सद्गृहस्थ ५. गुरुका स्वरूप ६. सत्शास्त्रोंका परिचय ७. ८. ९. १०. समाधिमरण अनुक्रम सच्चा ज्ञान और सच्ची श्रद्धा सदाचार तप और उसकी आराधना तू चाहे जिस धर्मको मानता हो, मुझे उसका पक्षपात नहीं है । मात्र कहनेका तात्पर्य यह है कि जिस मार्गसे संसारमलका नाश हो, उस भक्ति, उस धर्म और उस सदाचारका त सेवन कर । तू - श्रीमद् राजचन्द्र Jain Education International For Private & Personal Use Only ~ x u ∞ x 2 0 m w a ४ ८ ११ १४ १७ २० २३ २६ २९ www.jainelibrary.org

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