Book Title: Adhyatmagyan Praveshika
Author(s): Atmanandji Maharaj
Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba

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Page 10
________________ मनुष्यभव नीच योनियोमें भटकती इस आत्माको पाँच इंद्रियाँ और विवेकयुक्त ऐसे इस मनुष्यभवकी प्राप्ति भी विशिष्ट पुण्यके फलस्वरूप ही हुई है, ऐसा निश्चय हो सकता है। (क) सर्व आत्माओंकी अपेक्षा केवल मनुष्य ही सर्वोत्कृष्ट कार्य कर सकता है, और वह कार्य है - पूर्ण ज्ञान और पूर्ण आनंद प्रगट होनेरूप मोक्ष । इस प्रकार निज स्वभावको परिपूर्णरूपसे प्रगट करनेवाले उत्तम मोक्षरूपी कार्यकी प्राप्ति केवल इस मनुष्यभवमें ही हो सकती है, अन्य किसी भी भवमें नहीं । इसलिये इस उत्तम कार्यकी प्राप्ति के (बाह्य) कारणरूप ऐसे इस मनुष्यभवकी श्रेष्ठता है ऐसा मानना युक्ति-युक्त है । प्र. ९ : इस मनुष्यभवको सफल करनेके लिये हमें क्या करना चाहिये ? उ. ९ : 'भला विचारो और भला करों -यह संक्षेपमें तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है । मनुष्यभवकी सफलताके लिए तीन श्रेष्ठ अवलंबन ज्ञानीजनोने कहे हैं इनका आराधन करो । वे तीन अवलंबन हैं - सत्संग, सत्शास्त्र और सदाचार । विशेष तो आत्मानुभवी गुरुके प्रत्यक्ष समागमसे क्रमशः समझमें आयेगा । कल्याण हो ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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