Book Title: Adhyatmagyan Praveshika
Author(s): Atmanandji Maharaj
Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba

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Page 14
________________ सुखका स्वरूप और उसकी प्राप्ति (क) व्यसनरहित, शांत, संतोषी, सादा, विनयवान, परोपकारी और दयालु बनकर सच्ची मुमुक्षुताको अपने जीवन में प्रगटाना । (ड) मुमुक्षुता सहित, सद्गुरुके और परमात्माके गुणोंका, मुद्राका और चरित्रका बारबार स्मरण करके चित्तवृत्तिको निर्मल और एकाग्र करनेका अभ्यास करना। (इ) अंतमें, शुद्ध-सच्चिदानंद - परमज्ञानवान - अखंड, एकाकार, अभेद आत्मस्वरूपकी भावना करके बारबार उसमें लीन होना । सच्ची श्रद्धासे, सतत अभ्याससे, वैराग्यसे, सत्समागमसे और अडिग निश्चयसे आत्मिक आनंदकी प्राप्ति हो सकती है, अवश्य हो सकती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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