Book Title: Adhyatmagyan Praveshika
Author(s): Atmanandji Maharaj
Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba

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Page 20
________________ १३ दान धर्म सुखशांति मिलती है, परन्तु ज्ञानदानकी सचमुच प्राप्ति हो जाय तो सदाकालके लिए परम आनंदकी प्राप्ति होकर संसारपरिभ्रमणसे हमेशाके लिए छुटकारा हो जाता है। प्र. १२ : ज्ञानदान कौन कर सकता है ? उ. १२ : उत्तम आत्मज्ञान और सच्चारित्रके धारक सद्गुरु - संतोमें ही ऐसे महान कार्य करनेकी योग्यता है । प्र. १३ : दानकी महिमा कैसी है ? । उ. १३ : इस लोकमें और परलोकमें अनेक प्रकारकी कल्याण - परंपराओंको प्राप्त कराकर, मोक्षकी भी प्राप्ति करानेवाला ऐसा यह विवेकपूर्वकका दान गृहस्थोंका एक श्रेष्ठ धर्म है । इसलिये उसमें अवश्य प्रवृत्त होना चाहिए ऐसा आचार्योंका उपदेश है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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