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सच्चा ज्ञान और सच्ची श्रद्धा प्र..१ : सच्चे ज्ञानका क्या अर्थ है ? उ. १ : जगतके पदार्थ सचमुच जैसे हैं उसी स्वरूपमें उन्हें
यथार्थरूपसे जानना वह सच्चा ज्ञान है; और वैसी ही
अंतरंग मान्यता करना वह सच्ची श्रद्धा है। प्रः २ : हम लोहेको लोहा, सोनेको सोना आदि प्रकारसे
जानते हैं तो हमारा ज्ञान सच्चा है क्या ? उ. २ : यहाँ परमार्थका प्रयोजन है, इसलिये उन पदार्थोको जानते
हुए उनमें अगर मोह उत्पन्न हो जाय तो वह ज्ञान, रागमिश्रित होनेसे अज्ञान है (जिसे कुज्ञान भी कहते हैं)। आत्मज्ञान होनेसे पहले, किसी भी जीवका अन्य पदार्थोका
ज्ञान परमार्थसे सच्चा नहीं होता। प्र. ३ : ज्ञानीको भी राग होता है तो उसके ज्ञानको आप
सच्चा क्यों कहते हैं ? उ. ३ : ज्ञानीने आत्माको यथार्थरूपसे जाना है और अनुभव किया
है, इसलिये जगतके जीवोंके समान राग उनको होता ही नहीं है । ज्ञान और रागको वे अलग अलग स्वभाव जानते हैं इसलिये ऐसे भेदज्ञानकी विद्यमानतामें उनके ज्ञानको सच्चा ज्ञान कहते हैं । ऐसा होनेपर भी जब तक जितना राग है तब तक उतनी मात्रामें अज्ञानके अंश हैं
ऐसा सापेक्षरूपसे जानना । प्र. ४ : अध्यात्मपरिभाषामें सच्चा ज्ञान किसे कहते हैं ?
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