________________
दुःखनिवृत्तिका उपाय दुःखकी निवृत्तिको सभी जीव चाहते है, और दुःखकी निवृत्ति, जिनसे दुःख उत्पन्न होता है ऐसे राग, द्वेष और अज्ञान आदि दोषोंकी निवृत्ति हुए बिना, होना संभव नहीं है । इन राग आदिकी निवृत्ति एक आत्मज्ञानके सिवाय दूसरे किसी प्रकारसे भूतकालमें हुई नहीं है, वर्तमानकालमें होती नहीं है, भविष्यकालमें हो नहीं सकती। ऐसा सर्व ज्ञानी पुरुषोंको भासित हुआ है । इसलिये वह आत्मज्ञान जीवके लिये प्रयोजनरूप है । उसका सर्वश्रेष्ठ उपाय सद्गुरुवचनका श्रवण करना या संत्शास्त्रका विचार करना है । जो कोई जीव दुःखकी निवृत्ति चाहता हो, जिसे दुःखसे सर्वथा मुक्ति पानी हो उसे इसी एक मार्गकी आराधना किये बिना अन्य दूसरा कोई उपाय नहीं है । इसलिये जीवको सर्व प्रकारके मतमतांतरसे, कुलधर्मसे, लोकसंज्ञारूप धर्मसे
और ओधसंज्ञारूप धर्मसे उदासीन होकर एक आत्मविचार कर्तव्यरूप धर्मकी उपासना करना योग्य है ।
एक बड़ी निश्चयकी बात तो मुमुक्षु जीवको यही करना योग्य है कि सत्संग जैसा कल्याणका कोई बलवान कारण नहीं है, और उस सत्संगमें निरन्तर प्रति समय निवास चाहना, असत्संगका प्रतिक्षण विपरिणाम विचारना, यह श्रेयरूप है । बहुत बहुत करके यह बात अनुभवमें लाने जैसी है।
- श्रीमद् राजचन्द्र (पत्रांश-३७५)
-
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org