Book Title: Adhyatmagyan Praveshika
Author(s): Atmanandji Maharaj
Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba

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Page 40
________________ अध्यात्मज्ञान आत्मा मुख्यतः आत्मस्वभावसे वर्तन करे वह 'अध्यात्मज्ञान' । मुख्यतः जिसमें आत्माका वर्णन किया हो वह 'अध्यात्मशास्त्रं । भाव -अध्यात्मके बिना अक्षर (शब्द) अध्यात्मीका मोक्ष नहीं होता । जो गुण अक्षरोंमें कहे गये हैं वे गुण यदि आत्मामें रहें तो मोक्ष होता है। सत्पुरुषमें भाव -अध्यात्म प्रगट है। सत्पुरुषकी वाणी जो सुनता है वह द्रव्य-अध्यात्मी, शब्द-अध्यात्मी कहा जाता है । शब्द - अध्यात्मी अध्यात्मकी बातें कहते हैं; और महा अनर्थकारक प्रवर्तन करते हैं; इस कारणसे उन्हें ज्ञानदग्ध कहें । ऐसे अध्यात्मियोंको शुष्क और अज्ञानी समझें । ज्ञानी पुरुषरूपी सूर्यके प्रगट होनेके बाद सच्चे अध्यात्मी शुष्क रीतिसे प्रवृत्ति नहीं करते, भावअध्यात्ममें प्रगटरूपसे रहते हैं । आत्मामें सच्चे गुण उत्पन्न होनेके बाद मोक्ष होता है। इस कालमें द्रव्य अध्यात्मी, ज्ञानदग्ध बहुत हैं । द्रव्य-अध्यात्मी मंदिरके कलशके दृष्टांत से मूल परमार्थको नहीं समझते । . मोह आदि विकार ऐसे हैं कि सम्यग्दृष्टिको भी चलायमान कर देते हैं; इसलिये आप तो समझें कि मोक्षमार्ग प्राप्त करनेमें वैसे अनेक विघ्न हैं । आयु थोड़ी है, और कार्य महाभारत करना है । जिस तरह नाव छोटी हो और बड़ा महासागर पार करना हो, उसी तरह आयु तो थोड़ी है, और संसाररूपी महासागर पार करना है । जो पुरुष प्रभुके नामसे पार हुए हैं उन पुरुषोंको धन्य है ! अज्ञानी जीवको पता नहीं है कि अमुक गिरनेकी जगह है, परंतु ज्ञानियोंने उसे देखा हुआ है । अज्ञानी, द्रव्य - अध्यात्मी कहते हैं कि मुझमें कषाय नहीं है । सम्यकदृष्टि चैतन्यसंयुक्त है । 1 (उपदेशछाया-६) Jain Education International For Private & Personal Use Only श्रीमद् राजचन्द्र www.jainelibrary.org

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