Book Title: Adhyatmagyan Praveshika
Author(s): Atmanandji Maharaj
Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba

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Page 31
________________ अध्यात्मज्ञान-प्रवेशिका नहीं । (५) जुआ, मांसाहार, मद्यपान, वेश्यासंग, शिकार (संकल्पपूर्वक त्रसजीवकी हिंसा), बडी चोरी और परस्त्रीगमन; इन सात वस्तुओंका सर्वथा त्याग करना। (६) सरकारके नियमानुसार कर आदि भरने में नियमित और प्रामाणिक होना। प्र. ३ : नीति और सामान्य सदाचारमें अन्तर है ? नीतिके पालनसे क्या लाभ ? उ. ३ : नोतिके मुख्य छह प्रकार शास्त्रोंमें कहे गये है । उनमें यहाँ जो प्रकार बताया है उसे सामान्य नीति कहते हैं । इस नीतिके आश्रयसे पात्रता अर्थात् योग्यता प्रगट होने पर उस जीवको सद्गुरुके उपदेशसे विशेष सत्पुरुषार्थ करने पर आत्मिक धर्म प्रगट होता है । प्र. ४ : योग्यता देनेवाली इस नीतिके बिना क्या सत्य धर्म प्रगट नहीं हो सकता ? उ. ४ : योग्यताके बिना धर्म प्रगट नहीं हो सकता, इसीलिये कहा दशा न एवी ज्यां सुधी, जीव लहे नहि जोग, मोक्षमार्ग पामे नहीं, मटे न अंतर रोग । (आत्मसिद्धिशास्त्र : ३९) प्र. ५ : गृहस्थव्यवहारमें प्रर्वतमान मुमुक्षु जीवको इस नीतिधर्म के पालनमें कैसी दृष्टि रखनी चाहिए ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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