Book Title: Adhyatmagyan Praveshika
Author(s): Atmanandji Maharaj
Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba

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Page 21
________________ 256 गुरुका स्वरूप प्र. १ : गुरुके मुख्य कितने प्रकार हैं ? उ. १ : गुरुके मुख्य तीन प्रकार हैं : (अ) स्वयं तरै और अपने आश्रितोकों भी तारे, वह उत्तम काष्ठ समान गुरु जानना । (ब) दूसरे कागज स्वरूप - जो पुण्यसंचय करें लेकिन स्वयं तैर नहीं सकते और अन्यको तार नहीं सकते! (क) तीसरे पत्थर स्वरूप - जो स्वयं डूबे और अपने आश्रितोंकों भी डुबावें । प्र. २ : सद्गुरुका क्या अर्थ है ? उ. २ : जो महात्मा, जिज्ञासुओंको अध्यात्मसाधनामें विशिष्ट . मार्गदर्शन देनेकी योग्यतावाले हों, उन्हें सद्गुरु कहते प्र. ३ : वे योग्यतादर्शक लक्षण कौनसे हैं ? उ. ३ : (१) आत्मज्ञान - आत्मसाक्षात्कार । (२) समदर्शिता - समता, समाधि । (३) आत्मार्थप्रेरक बोधको देनेवाले होते हैं। (४) समस्त सत्शास्त्रोंके रहस्यके अद्भुत ज्ञाता होते हैं। प्र. ४ : सद्गुरु और सत्पुरुष एक ही हैं ? उ. ४ : इन दोनोंमें अमुक समानता होने पर भी सद्गुरुका पद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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