Book Title: Adhyatmagyan Praveshika
Author(s): Atmanandji Maharaj
Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba

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Page 15
________________ ३. सद्गृहस्थ प्र. १ : सद्गृहस्थ किसे कहना चाहिए ? उ. १ : जो गृहस्थाश्रमी मनुष्य 'सत्' का अनुसरण करनेवाला हो, उसे सामान्य रूपसे सद्गृहस्थ कहते हैं । प्र. २: सत् का अनुसरण करनेवाला इसका अर्थ क्या ? 'सत्' का विशाल अर्थ ऐसे समझना कि वह मनुष्य उ. २ : (अ) अपने लेनदेन, वचन व्यवहार अथवा अन्य लौकिक कार्य करते समय जितना सम्भव हो सत्यरूपसे चले | Mond (ब) अपने जीवनविकासके लिये सत्-देव- गुरु-धर्म की शरण स्वीकारे । - (क) परमार्थसे 'सत्-स्वरूप ऐसी अपनी आत्मा की पहचानका प्रयत्न करता हो । उ. ३ : प्र. ३ : अपने जीवनमें वह कौनसे न्यायको अनुसरता है ? धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ऐसे चार प्रकारके पुरुषार्थ को अविरोधरूपसे साधते हुए भी, धर्मपूर्वकके अर्थोपार्जनको और न्यायपूर्वककी जीवन इच्छाओंकों अनुसरता है । ऐसा होनेसे उसका जीवन सहजरूपसे धर्मनिष्ठामय बन जाता है । Jain Education International प्र. ४ : उसकी दैनिक जीवनचर्यामें धर्मके कौन कौनसे मुख्य अंग होते हैं ? For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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