Book Title: Adhyatmagyan Praveshika
Author(s): Atmanandji Maharaj
Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba

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Page 13
________________ अध्यात्मज्ञान-प्रवेशिका क्रमिक विकाससे होता है । व्यवहारजीवनमें भी जितने प्रमाणमें क्षमा, संतोष, सरलता, सत्य आदि गुण वास्तविकरूपसे प्रगट हुए हों उतने प्रमाणमें आनंद और शांतिका अनुभव होता है । यदि यह बात समझमें न आती हो तो क्रोध और क्षमाके भावोंके समय अपनी अवस्थाका पृथक्करण करके देखो और निष्पक्षतासे कहो कि आप कौनसे समय अधिक स्वस्थ, प्रसन्न और आनन्दित होते हैं ? प्र. ९ : क्षमा आदि आत्मिक गुण सुखरूप हैं ऐसा तो लगता है परन्तु सचमुच जैसा आत्माके आनन्दका वर्णन किया गया है वैसा क्या हमें इस युगमें प्राप्त हो सकता है ? उ. ९ : इस युगमें भी आत्माका आनंद अपने सत्पुरुषार्थके प्रमाणमें अवश्य प्राप्त हो सकता है । यह बात शास्त्र से, युक्तिसे और स्वानुभवसे सिद्ध हुई कहते हैं । प्र. १० : ऐसे आनंदकी प्राप्तिका व्यावहारिक मार्ग क्या है यह बताइये। उ. १० : अति संक्षेपमें शाश्वत आनन्दका उपाय इस प्रकार है : (अ) सद्गुरुकी शोध करके, बार बार या निरंतर उनका सत्संग करना। (ब) जहाँ ऐसा सर्वोत्तम योग न बन सके, वहाँ सत्संगका आश्रय करके, सत्शास्त्रोंके अध्ययन द्वारा, आत्मस्वरूपका यथार्थ निर्णय करना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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