Book Title: Adhyatmagyan Praveshika
Author(s): Atmanandji Maharaj
Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba

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Page 9
________________ अध्यात्मज्ञान-प्रवेशिका नहीं करते उनका कल्याण नहीं होता । प्र. ६ : उन मनुष्योंका कल्याण नहीं होता तो क्या होता है? उ. ६ : ऐसे मनुष्य इस जगतमें अनेक प्रकारकी चिंता उपाधियोसें घिर जाते हैं, मृत्यु काल तक लोभादिके वश होकर आकुलव्याकुल रहते हैं और कुगतिमरण पाकर परभवमें भी दुर्गतिके अनेक दुःखोंको पाते हैं । प्र. ७ : मनुष्यभव दुर्लभ है यह कैसे जाना जा सकता है? उ. ७ : सर्व संतोंकी वाणीसे और सत्शास्त्रोंसे यह बात जानकर धर्मात्मा जीव इसे सत्य मानते हैं । तदुपरांत प्रत्यक्षमें भी एक-इंद्रियवाले वनस्पति आदि या तीन-इंद्रियवाले कीड़ी (चींटी) आदिकी संख्याकी अपेक्षा मनुष्योंकी संख्या बिल्कुल कम है ऐसा देख सकते हैं । इस प्रकार शास्त्रोंसे, संतोंके उपदेशसे और प्रत्यक्ष प्रमाणसे मनुष्यभवको दुर्लभता जानी जा सकती है । प्र. ८ : पूर्वाचार्यो और संतोंने मनुष्यभवको दुर्लभ रत्नचिं तामणि जैसा कहा है इसका क्या कारण है ? उ. ८ : (अ) आत्माके सामान्य विकासक्रममें भी मनुष्य- जितना आत्माका विकास अन्य किसी भी प्राणीमें दिखाई नहीं देता, यह तो इस युगमें हुए विज्ञान और कलाके विकास पर से हम स्पष्टरूपसे जान सकते (ब) जैसे कार्यकी विशेषतासे कारणकी विशेषताका निश्चय हो सकता है, वैसे अनादि कालसे अनेक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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