Book Title: Adhyatma Darshan Author(s): Anandghan, Nemichandmuni Publisher: Vishva Vatsalya Prakashan Samiti View full book textPage 7
________________ आशीर्वचन भारत की सन्त-परम्परा मे समय भारत के प्रत्येक प्रान्त मे अध्यात्मवादी, भक्तिवादी, तथा तत्त्ववादी सन्त हुए हैं। उत्तरप्रदेश की सन्तपरम्परा मे सूरदास तथा तुलसीदास का नाम अत्यन्त प्रसिद्ध है। ये दोनो सन्त चैष्णव-सम्प्रदाय के थे। परन्तु सन्त कवीए किसी भी सम्प्रदाय मे आवद्ध न हो कर उन्मुक्त विचारक कहे जा सकते हैं , महाराष्ट्र मे सन्त रामदास, सन्त सुकाराम तथा एकनाथ आदि जनप्रिय तथा लोक-प्रसिद्ध सन्त हो चुके हैं। राजस्थान मे मीरा, रैदास और दादू राजस्थानी जनता के मन के कण-कण मे रम चुके हैं। मीरा जैसा पद-माधुर्य तथा भावगाम्भीर्य अन्यत्र मिलना बडा ही दुर्लभ है। यही कारण है, कि मीरा के सगीतमय पद काश्मीर से ले कर कन्याकुमारी तक आवाल-गोपाल प्रसिद्ध हैं। अत. मीरा का जीवन तथा उसके भाव-प्रवण पद भारतीय जन-जीवन को सार्वजनिक सम्पत्ति माने जाते हैं। वीर-प्रसूता राजस्थानभूमि में एक अन्य अध्यात्मवादी सन्त हुआ था, जिसका नाम आनन्दघन था। सन्त आनन्दधन का जन्म जैनपरम्परा के शालीन परिवार मे हुआ था। उसके मज्जागत सस्कार भी जैन-सस्कृति के ही रहे। परन्तु सन्त आनन्दघन के पदो को तथा अध्यात्म-प्रधान स्तुतियो को पढ कर यह निर्णय नहीं किया जा सकता, कि वह जैन-परम्परा मे आबद्ध था। सन्त आनन्दघन ने अपने पदो मे अन्धपरम्परा, रूढि और जडता का खुल कर विरोध किया है। परम्पराप्रेमियो ने उसे परम्परा के जाल में जकड़ने का एकाधिक बार प्रयास किया था, पर स्वतन्त्रविचारक तथा युगस्पर्शी चिन्तन के धनी सुधारवादी सन्त आनन्दघन ने परम्पराप्रेमियो की किसी भी पार्त को मानने से स्पष्ट इन्कार कर दिया था। इसी कारण परम्परा-वादियो द्वारा उन्हे कई बार तिरस्कृत भी होना पड़ा, पर उस मस्त योगी को आदरनिरादर को कोई परवाह नही थी। धर्मध्वजी जडवादी लोगो से जीवनभर वे सघर्ष करते रहे, उनके साथ समझौते के समस्त प्रयास असफल रहे। सन्त आनन्दघन जैनपरम्परा के थे, इसमे जरा भी मन्देह नही है । परन्तु उनके .Page Navigation
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