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स्तवन-संग्रह। उत्तम मारग साधिये ॥ उल्लालो ॥ साधियें मारग एह करणी ज्ञान लहिये निरमलो, सुरलोकमें नर लोक मांहे ज्ञानवंत ते आगलो॥ अनुक्रमे केवल ज्ञान पामी सासतां सुख जे लहे, जे करे पांचमी तप अखंडित वीर जिणवर इम कहे ॥४॥ कलश। एमपंचमी तप फल प्ररूपक, वर्द्धमान जिणेसरो॥ में थुण्यो श्री अरिहंत भगवंत, अतुल वल अलवेसरो ॥ जयवंत श्री जिन चन्द सूरिज, सकलचन्द नमंसियो॥ वाचनाचारिज समय सुन्दर, भगति भाव, प्रशंसियो ॥५॥ इति श्रीपंचमी वृद्धस्तवन संपूर्णम् ॥
॥पार्श्वजिन अथवा लघुपञ्चमी का स्तवन ॥ ___ पंचमि तप तुमें करो रे प्राणी, निर्मल पामो ज्ञान रे॥ पहिलं ज्ञानने पर्छ किरिया, नहिं कोइ ज्ञान समान रे ॥ ५० ॥१॥ नंदिसूत्रमें ज्ञान वखाण्यु, ज्ञानना पंच प्रकार रे॥ मति श्रुत-अवधि अने मनःपर्यव-केवल ज्ञान श्रीकार रे ॥ ५० ॥२॥
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