Book Title: Abhayratnasara
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Danmal Shankardas Nahta

View full book text
Previous | Next

Page 777
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७४६ भक्ष्याभक्ष्य विचार । भोजन करते समय दूसरी धोती पहननी चाहिये। और हाथ पैर धो कर खाने बैठना चाहिये। जो प्रभुको नित्य पूजा करनेवाले हैं, उन्हें तो बराबर राखसे हाथ शुद्ध कर लेना चाहिये। मिट्टी सचित्त है, इस लिये राख ही काममें लानी चाहिये । खुली जगहमें जिसके ऊपर छाननी न हो, भोजन नहीं करना चाहिये । घी, गुड़, दूध, दही, मठा, दाल तरकारी और पानीके वर्तन क्षण भर भी खुले नहीं छोड़ने चाहिये। श्रावकको उचित है, कि थोड़ी भूख रहते ही खाना खतम कर दे; यानी जितना चाहिये, उससे कम ही भोजन करे अथवा जितनी भूख हो, उतना ही खाना चाहिये। थालीमें जू ठन नहीं छोड़नी चाहिये। भरसक तो खा-पी कर थाली धो कर पी लेनी चाहिये। थाली धो कर पीनेसे आयंबीलका फल होता है। मुनिमहाराजको शुद्धता पूर्वक आहार करानेके बाद आप इसी प्रकाइ शुद्धताके साथ नित्य आहार करनेसे अमृतके समान फल मिलता है, नहीं तो अवश्य ही विषके समान फल होता है। जुठा बर्तन देर तक नहीं पड़े रहने देना, उसे तुरत आप धो लेना या नौकरसे धुलवा लेना चाहिये । अन्यथा, उसमें बहुतसे जीवोंकी उत्पत्ति हो सकती है। - स्त्रियोंके ध्यान देने योग्य बातें। जैसे राज्यमें मन्त्री प्रधान होता है, वैसे ही घरमें स्त्रीकी प्रधानता होती है। इसलिये उनको इस अभक्ष्य-अनन्तकायका For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788