Book Title: Abhayratnasara
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Danmal Shankardas Nahta

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Page 775
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७४४ भक्ष्याभक्ष्य विचार | आये; पर पिये नहीं इच्छा हुई तो उस इच्छा मात्र से अतिश्रम हुआ; जिस स्थान पर हो वहांसे पानी पीनेके स्थानपर जाये, तो व्यतिक्रम-दोष लगता है; वर्तमानमें पानी लेकर मुहके पास ले तो अतिचार-दोष लगता है, और जब पानी पी डाले तब अनाचार हो जायेगा । इसलिये व्रत पालनेवालोंको तो चाहिये, कि ऐसी चेष्टा करे । जिसमें अतिक्रमका भी दोष न लगे। इस नाशवान शरीर के मोहमें पड़कर उभयलोकमें सुख देनेवाले व्रतको तो प्राणोंसे भी बढ़कर समझना चाहिये । आगमें कूद पड़ना अच्छा पर व्रतका भङ्ग करना अच्छा नहीं होता | चंदोवा | प्रत्येक श्रावक के घर नीचे लिखे १० स्थानोंमें काँदोवे या छप्पर जरूर बांधने चाहिये (१) चूल्हेपर ( २ ) पानीके पन्डरें पर ( ३ ) भोजनके स्थानों में (४) चक्कीकी जगह ( ५ ) खाने-पीने की चीज पर (६) दूध-दहीके ऊपर (७) सोनेके बिछोनेके ऊपर ( ८ ) स्नान करनेकी जगह ( ६ ) समायिक आदि धर्म- क्रिया के स्थान में ( पौषधशाला में ) और मन्दिरमें । सात प्रकारके छनने रखना चाहिये । ( १ ) पानीका छनना । (२) घीका छनना । (३) तेलका छनना । ( ४ ) दूधका छनना । (५) छाँछका छनना । ( ६ ) गरम किये हुए अचित्त पानीका छनना । ( ७ ) आंटा चालनेका या छाननेकी चलनी । For Private And Personal Use Only

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