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६८८ भक्ष्याभक्ष्य विचार ।
आपमें है, उतनी ही उन सूक्ष्म जीवोंमें है। अतएव आपका पूर्ण कर्तव्य है, कि जिस पदार्थके खानेसे जीवहानि होती हो, या किसी जोवको कष्ट होता हो तो उस पदार्थको सर्वथा न खाना चाहिये । यदि कोई आपका दूसरा भाई खाता हो तो उसे भी खानेको निषेध करना आपका परम कत्तव्य है।
श्रावकको उत्सर्ग मार्गसे प्रासुक अहार लेना कहा है; पर यदि शक्ति न हो तो सचित्त पदार्थ का त्याग करे, यदि वह भी न बन पड़े तो बाईस अभक्षय और बत्तीस अनन्त कार्यका त्याग करना तो परम आवश्यक है। अतएव यहाँ पर हम अपने प्रेमी पाठकोंके लाभके लिये कौन-कौन से अभक्षय पदार्थ हैं। वह संक्षिप्त रूपसे समझा देते हैं । आशा है, पाठक गण इसे पढ़ समझकर यदि थोडासा भी लाभ उठायेंगे तो हम अपने परिश्रमको सफल समझेंगे ।
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